सुखी वैवाहिक जीवन और पति का प्रेम पाने के लिये करें सातुड़ी तीज का व्रत। जानियें सातुड़ी (Satudi Teej) कब हैं? पढ़ियें तीज का महत्व, सातुड़ी तीज पर मनायी जाने वाली परंपराये, व्रत की विधि, कजरी तीज के व्रत के नियम और सातुड़ी तीज व्रत कथा (Satudi Teej Vrat Katha)…
कजरी तीज (Kajari Teej) कब हैं?, कजरी तीज (Kajari Teej) का महत्व क्या हैंं?, कजरी तीज / सातुड़ी तीज पर मनायी जाने वाली परंपराये कौन सी हैं?, कजरी तीज व्रत की विधि क्या हैं? और कजरी तीज के व्रत के नियम क्या हैं? यह जानने के लिये यहाँ क्लिक करेंं। Click here for information about Kajari Teej…
Satudi Teej Vrat Katha – Second
सातुड़ी तीज व्रत कथा – द्वितीय
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र थे उनमें से छ: पुत्र स्वस्थ थे। परंतु जो सबसे छोटा पुत्र था वो अपाहिज था। साथ ही उसका चरित्र भी खराब था। उसे वेश्यागमन की लत भी थी। एक वेश्या पर आसक्त होकर उसने अपना सारा धन उस पर लुटा दिया था। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। और उसके घर में खाने के भी लाले पड़ गये थे। उसके बाकी सभी भाई अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहते थे। परंतु उसके इस बुरे शौक के कारण कोई भी उससे मतलब नही रखता था। उसकी इस बुरी आदत के बावजूद भी उसकी स्त्री उसकी सेवा किया करती थी। उसकी पत्नीक बहुत ही सुशील और पतिव्रता नारी थी। वो पति को परमेश्वर मानकर उसकी हर बात मानती थी। अपने पति के आदेश का पालन करने के लिये वो स्वयं उसे अपने कंधे पर बिठाकर नदी पार करके वेश्यालय लेकर जाती थी।
उसकी ऐसी हालत देखकर उसे उसकी पड़ोसन ने भाद्रपद मास की कजली तीज (Kajali Teej) का व्रत करने का सुझाव दिया। उसने उसे कहा तुम भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की तृतीया जिसे लोग कजरी (Kajari Teej) तीज और सातुड़ी तीज (Satudi Teej) भी कहते है उसका व्रत करो। उससे तुम्हारे सभी कष्टों का नाश होगा और तुम्हारा वैवाहिक जीवन सुखमय हो जायेगा। ऐसा कहकर उसे व्रत का सारा विधान बताया। जब कजरी तीज आयी तो उसने पूरी श्रद्दा से व्रत और पूजन किया। परंतु उसके पास सत्तूा बनाने के लिये पर्याप्त धन नही था। इस कारण वो सत्तू ना बना सकी।
जब शाम को पूजन करने लगी तब उसके पति ने उससे कहा कि जल्दी से ये पूजा समाप्त कर और मुझे उस वेश्या के घर लेकर चल। पति का आदेश मानकर उसने पूजन समाप्त करी और अपने पति को लेकर उस वेश्या के घर लेकर गयी। उस दिन उसका पति उसे वापस घर जाने की आज्ञा देना भूल गया। तो वो वही उस घर के बाहर खड़ी होकर प्रतीक्षा करने लगी। वहाँ खड़े-खड़े मन ही मन वो तीज माता का ध्यान करने लगी। उससे पूजन में जो कमी रह गई थी, उसकी क्षमा माँग रही थी और मन ही मन अपने सुखी वैवाहिक जीवन की माँ से कामना कर रही थी।
वो अपने विचारों में खोई हुयी थी, तभी मूसलाधार बारिश शुरू हो गई और जो नदी पार करके वो आई थी उसमें पानी का स्तर बढ़ने लगा। नदी में उफान आ गया। तभी उसे एक आकाशवाणी सुनाई दी
“आवतारी जावतारी दोना खोल के पी, पिया प्यारी होय।“
आकाशवाणी सुनकर उसने देखा की नदी पर एक दोना तैर रहा था। उसने उसे उठाया तो उसमें दूध था। उसने आकाशवाणी के अनुसार उस दोने का सारा दूध सात घूँट में पी लिया। दूध पीने के बाद उसे चमत्कार का सा अनुभव हुआ। वहाँ उस वेश्या का मन बदल गया और उसने उसके पति का सारा धन उसे वापस देकर वहाँ से जाने को कह दिया। और स्वयं गाँव छोड़कर जाने को तैयार हो गयी।
वो पत्नी अपने पति को लेकर अपने घर आ गई। इसके बाद से उसके जीवन में सबकुछ सकारात्मक होने लगा। उसके पति के मन में भी अपनी पत्नी के लिये प्रेम और सम्मान का भाव आने लगा। उसने वेश्यागमन का विचार छोड़ दिया। और अपनी पत्नी के साथ प्रेम से रहने लगा। अपनी सभी बुरी आदतों को उसने त्याग दिया। तीज माता की कृपा से उसका शरीर भी स्वस्थ हो गया। और वो दोनों सुख से एकसाथ रहने लगें।
उससे इस व्रत के विषय में जानकर कई स्त्रियों ने कजरी तीज का व्रत करना आरम्भ कर दिया। और वो स्वयं भी हर वर्ष कजरी तीज का व्रत पूरे विधि विधान से करती।