जानिए कैसे श्री षष्ठी देवी स्तोत्रम् (Shashti Devi Stotra) आपकी मनोकामना पूरी कर सकता है

Shashti Devi Stotra; Image of Shashti Devi;

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता षष्ठी देवी (छठ माता) की उपासना करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। श्री षष्ठी देवी स्तोत्रम् (Shashti Devi Stotra) का पाठ करने से देवी प्रसन्न होती है और उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है। छठ पूजा के दिन इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिये। पढ़ियें श्री षष्ठी देवी स्तोत्रम् और उसका महात्म्य…

Significance Of Shri Shashti Devi Stotram
श्री षष्ठी देवि स्तोत्रम् का महत्व

शास्त्रों में षष्ठी देवी को बच्चों की अधिष्ठात्री देवी बताया गया हैं। हिन्दु धर्म की मान्यता के अनुसार निसंतान दम्पत्ति संतान प्राप्ति की कामना से अगर षष्ठी देवी की उपासना करें तो उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। देवी षष्ठी के आराधना से संतान दीर्घायु होती हैं। देवी षष्ठी परमपिता ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं। इन्हें देवसेना, छठ माता आदि नामों से पुकारा जाता हैं।

प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके शुद्ध चित्त से पूर्ण श्रद्धा – भक्ति के साथ श्री षष्ठी देवि स्तोत्र का पाठ करने से जातक को षष्ठी देवी की कृपा प्राप्त होती है –

  • उस पर देवी माँ प्रसन्न होती है।
  • पुत्र की कामना करने वाले को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
  • देवी उसे मनोवांछित फल प्रदान करती है।
  • धन-धान्य में वृद्धि होती है।
  • परिवार में सुख-शान्ति आती है।
  • संतान की उम्र लम्बी होती है।
  • दुख-भय और दरिद्रता का नाश होता है।
  • आयु-यश-बल में वृद्धि होती है।
  • विद्या की प्राप्ति होती है।
  • विपत्तियों से सुरक्षा होती है।
  • मोक्ष की प्राप्ति होती है।

विशेष: छठ पूजा पर इस स्तोत्र का पाठ करना बहुत शुभ फलदायक होता है।

Shri Shashti Devi Stotra Lyrics
श्रीषष्ठीदेवि स्तोत्रम्

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

ध्यानम् ।
श्रीमन्मातरमम्बिकां विधि मनोजातां सदाभीष्टदां
स्कन्देष्टां च जगत्प्रसूं विजयदां सत्पुत्र सौभाग्यदाम् ।
सद्रत्नाभरणान्वितां सकरुणां शुभ्रां शुभां सुप्रभां
षष्ठांशां प्रकृतेः परां भगवतीं श्रीदेवसेनां भजे ॥

षष्ठांशां प्रकृतेः शुद्धां सुप्रतिष्ठां च सुव्रताम् ।
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम् ॥

श्वेतचम्पक वर्णाभां रक्तभूषण भूषिताम् ।
पवित्ररूपां परमां देवसेनां पराम्भजे ॥

अथ श्रीषष्ठीदेवि स्तोत्रम् ।
स्तोत्रं श‍ृणु मुनिश्रेष्ठ सर्वकामशुभावहम् ।
वाञ्छाप्रदं च सर्वेषां गूढं वेदे च नारद ॥

प्रियव्रत उवाच ।

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नमः ।
शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ १॥

वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नमः ।
सुखदायै मोक्षदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ २॥

सृष्ट्यै षष्ठांशरूपायै सिद्धायै च नमो नमः ।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ॥ ३॥

परायै पारदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
सारायै सारदायै च परायै सर्वकर्मणाम् ॥ ४॥

बालाधिष्ठातृदेव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम् ॥ ५॥

प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
पूज्यायै स्कन्दकान्तायै सर्वेषां सर्वकर्मसु ॥ ६॥

देवरक्षणकारिण्यै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै नृणां सदा ॥ ७॥

हिंसाक्रोधवर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि ॥ ८॥

धर्मं देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते ॥ ९॥

कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नमः ।

॥ फलश‍ृति ॥

इति देवीं च संस्तूय लेभे पुत्रं प्रियव्रतः ॥ १०॥

यशस्विनं च राजेन्द्रं षष्ठीदेवीप्रसादतः ।
षष्ठीस्तोत्रमिदं ब्रह्मन्यः श‍ृणोति च वत्सरम्॥ ११।
अपुत्रो लभते पुत्रं वरं सुचिरजीविनम् ।
वर्षमेकं च या भक्त्या संयत्तेदं श‍ृणोति च ॥ १२॥

सर्वपापाद्विनिर्मुक्ता महावन्ध्या प्रसूयते ।
वीरपुत्रं च गुणिनं विद्यावन्तं यशस्विनम् ॥ १३॥

सुचिरायुष्मन्तमेव षष्ठीमातृप्रसादतः ।
काकवन्ध्या च या नारी मृतापत्या च या भवेत् ॥ १४॥

वर्षं श‍ृत्वा लभेत्पुत्रं षष्ठीदेवीप्रसादतः ।
रोगयुक्ते च बाले च पिता माता श‍ृणोति चेत् ॥ १५॥

मासं च मुच्यते बालः षष्ठीदेवी प्रसादतः ।

॥ इति श्रीषष्ठीदेविस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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