धर्मग्रंथो के अनुसार निर्जला एकदशी के दिन रूक्मिणी विवाह (Rukmini Vivah) का प्रसंग हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा रूक्मिणी जी का हरण (Rukmini Haran) किया गया था। पढ़ियें इस कथा के विषय में और जानिये इस दिन का महत्व…
Rukmini Vivah
रुक्मिणी विवाह
शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के दिन रुक्मिणी विवाह (Rukmini Vivah) का प्रसंग हुआ था। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु और रूक्मिणी जी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह त्योहार भगवान श्री कृष्ण और देवी रूक्मिणी के विवाह को समर्पित है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण मे रुक्मिणी जी हरण किया था। इसलिये इसे रूक्मिणी हरण भी कहा जाता है। इस दिन मन्दिरों में विशेष आयोजन किये जाते है।
When is Rukmini Vivah in 2024?
रुक्मिणी विवाह 2024 में कब है?
इस वर्ष रुक्मिणी विवाह (Rukmini Vivah) का पर्व 18 जून 2024, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा।
इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा विधि
इस दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर लक्ष्मी नारायण की पूजा करें। दीपक जलायें। फल – फूल – मेवा – पंचामृत चढ़ायें। मिठाई का भोग लगायें। लक्ष्मी नारायण की आरती करें।
व्रत एवं पूजन का लाभ
इस दिन भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से साधक को देवी लक्ष्मी और भगवान नारायण दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धन – संपत्ति में वृद्धि होती है। कुंवारी कन्याओं को मनपसन्द जीवनसाथी मिलता है। पति-पत्नी में प्रेम बढ़ता है। गृह कलेश से मुक्ति मिलती है। दुख – दरिद्रता का नाश होता है और घर में सुख – शांति आती है। जीवन आनंद से भर जाता है।
Story of Rukmini Haran
रुक्मिणी हरण की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार रुक्मिणी जी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है और श्री कृष्ण को श्री हरि विष्णु का अवतार माना जाता है। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप मे अवतार लिया और कंस का वध किया था। देवी लक्ष्मी ने रुक्मिणी जी के रूप मे अवतार लिया था। रुक्मिणी जी भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थीं और उन्ही को अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी। लेकिन उनके बड़े भाई रुक्मी कंस के करीबी थे। इसी कारण वो श्री कृष्ण के प्रति शत्रुता का भाव रखते थे। रूक्मी चेदिराज शिशुपाल से अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह करना चाहता था। क्योकि वो नही चाहते थे की रुक्मिणी का विवाह श्री कृष्ण से हो। और साथ ही शिशुपाल भी श्री कृष्ण के प्रति अपने मन में वैमनस्य का भाव रखता था।
जब रुक्मिणी जी को यह ज्ञात हुआ की उनके भाई उनका विवाह शिशुपाल से कराना चाहते है तो उन्होने श्री कृष्ण को सन्देश भेजकर उनसे सहायता माँगी और उनको अपनी इच्छा भी बताई। तब श्री कृष्ण ने रुक्मिणी जी की इच्छा के अनुसार उन्ही के राज मे जाकर उनका हरण किया। जब उनके भाई रूक्मी ने श्री कृष्ण को रोकने की कोशिश की तो उनके बीच युद्ध होता है जिसमें श्री कृष्ण रूक्मी को पराजित कर देते है और रुक्मिणी जी का हरण करके उन्हे द्वारिका ले जाते है। यह रुक्मिणी विवाह (Rukmini Vivah) का प्रसंग जिस दिन हुआ वो दिन ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी का दिन था।