श्रावण मास (सावन) में जितने भी मंगलवार आते है उतने मंगलवार के दिन मंगला गौरी का व्रत (Mangala Gauri Vrat) और पूजन करने का विधान है। मंगला गौरी व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। अधिक मास का समायोजन सावन मास में होने से इस बार दो सावन होंगे और इसलिये इस वर्ष नौ मंगला गौरी व्रत होंगे। जानिये मंगला गौरी व्रत कब और कैसे करते है? साथ ही पढ़िये व्रत कथा और व्रत के उद्यापन की विधि…
Mangala Gauri Vrat
मंगला गौरी व्रत
हिंदु मान्यता के अनुसार यह व्रत विवाहित स्त्रियाँ अपने अखण्ड़ सुहाग के लिये करती है। नव विवाहित महिलाएँ यह व्रत व पूजन विवाह के पहले पांच वर्षों के लिए करती है। स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु और अपने परिवार की खुशहाली के लिए भी यह व्रत करती है। श्रावण मास में मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) व पूजन करने से व्रत करने वाली महिला को जीवन के हर पहलू में समृद्धि और वैवाहिक जीवन में खुशी प्राप्त होती है। उन्हें धन, आज्ञाकारी संतान और खुशहाल परिवार की प्राप्ति होती है।
Mangla Gauri Vrat Ki Vidhi
मंगला गौरी व्रत की विधि
अपने परिवार की खुशहाली और पति की लम्बी आयु के लिये यह मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) हर विवाहिता स्त्री को करना चाहिये। विशेषकर नव-विवाहिता स्त्री को यह व्रत जरूर करना चाहिये। जो स्त्री उपवास नहीं कर सकती हो उसे यह पूजा अवश्य करनी चाहिए।
• प्रात:काल जल्दी उठकर सिर से स्नान करें।
• पूजा स्थान पर दो पाटे रखें, उसमें से एक पर सफेट कपड़ा बिछाएं और दूसरे पर लाल कपड़ा बिछाएं।
• फिर सफेद कपड़े पर चावल के नौ ढेर बनायें और लाल कपड़े पर गेहूँ के सोलह ढेर बनाएँ
• फिर एक और पट्टे पर थोड़ा-सा चावल रखकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें और वहीं पास में थोड़ा-सा गेहूँ रखकर उसके ऊपर ताम्बें कलश रखें।
• आटे का चार मुख वाला दीपक बनाकर उसमें सूत की 16-16 तार की चार बत्तियाँ बनाकर प्रज्जवलित करें।
• पूजन से पूर्व संकल्प लें और सबसे पहले भगवान गणेश जी की पूजा करें।
• फिर जल, पंचामृत, चन्दन, सिन्दूर, रोली, मौली, चावल, जनेऊ, फूल, बेलपत्र, प्रसाद, फल, पाँच मेवा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, दक्षिणा, गुलाल आदि चढ़ाकर फिर सोलह धूपबत्ती जलायें।
• फिर ताम्बें के कलश की पूजा करे और उसके बाद कलश में पानी भरें। उसके बाद उसमें पांच आमे के पत्ते लागायें, एक सुपारी ड़ालें, पंचरत्न लगायें, थोड़ी मिट्टी और दक्षिणा ड़ाल दें।
• उसके बाद थोड़ा- सा चावल एक ढक्कन में रखकर उसे कलश पर रखें और लाल कपड़े में थोड़ी घास बाँधकर उस ढक्कन पर रख दें।
• जिस प्रकार गणेशजी की पूजा करी थी उसी प्रकार कलश की पूजन करें। किंतु कलश में सिन्दूर एवं बेलपत्र ना चढ़ायें। इसके बाद सफेद कपड़े पर लगाये नौ चावल के ढ़ेर को नौ ग्रह मान कर उनकी पूजा करें, जिस प्रकार कलश की पूजा करी थी उसी प्रकार पूजन करें।
• लाल कपड़े पर लगायें सोलह गेहूँ के ढ़ेर को षोड़्स मातृका मानकर उनकी पूजने करें। उनपर हल्दी, मेहंदी, सिन्दूर चढ़ायें किंतु जनेऊ न चढ़ायें।
• तत्पश्चात सब मिलाकर देवी-देवताओं को अर्पित कर दें।
• तत्पश्चात पण्डितजी के तिलक लगायें और मौली बाँधें फिर पण्डितजी से अपने तिलक लगवायें और मौली बंधवायें।
• अब मंगला गौरी की पूजा करने के लिये एक कोने पर थाली रखें, उसपर चकला रखें। चकले के निकट में आटे का बना सिल-बट्टा रखें। फिर उस चकले पर गंगाजी की मिट्टी (या मिट्टी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर) से मंगला गौरी बनाकर स्थापित करें।
• मंगला गौरी की स्थापना के बाद मंगला गौरी को जल, घी, दूध, दही, शक्कर, शहद, पंचामृत से स्नान करायें। फिर उनको वस्त्र पहनायें और नथ पहनायें।
• उसके बाद हल्दी, सिंदूर, रोली, चावल, चंदन, मेंहदी, काजल लगाएँ।
• तत्पश्चात माता जी को सब चीजें सोलह-सोलह चढ़ाएँ। सोलह माला, सोलह लड्डू (आटे के), सोलह फल, सोलह जगह 5 तरह की मेवा, सोलह जगह अनाज, सोलह जगह सोलह जीरें के दानें, सोलह जगह सोलह धनियें के दानें, सोलह पान, सोलह सुपारी, सोलह लौंग, सोलह इलायची, सोलह सुहाग पिटारी माता जी को चढ़ाएँ।
• सुहाग पीटारी में ब्लाऊज, रोली, श्रुंगार का सामान (मेंहदी, काजल, सिंदूर, कंघा, शीशा, 16 चूड़ी), और दक्षिणा अपनी इच्छानुसार चढ़ायें।
• मंगला गौरी स्त्रोत्रं का पाठ करें।
• उसके बाद मंगला गौरी की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद सोलह आटे के दीपक बनाकर उसमें सूत की सोलह तार की सोलह बत्ती बनाकर, कपूर रखकर, आरती करें और उसके बाद परिक्रमा करें।
• इस सबके बाद सोलह आटे के लड्डू का बायना निकालकर अपनी सासूजी को दे और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें।
• बायना देने के बाद भोजन करें। एक तरह के अनाज की वस्तुएँ ही खायें।
• इस व्रत में नमक नहीं खायें।
• अगले दिन यानी बुधवार को सुबह मंगला गौरी का विसर्जन करें। इस दिन भी भोजन विसर्जन के बाद ही करें।
Mangala Gauri Vrat Katha
मंगला गौरी व्रत की कथा
बहुत समय पहले की बात है एक शहर में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम था धर्मपाल। वहा बहुत ही धर्म परायण और व्यापार में कुशल व्यक्ति था। उसके पास धन की कोई कमी नही थी। उसकी पत्नी बहुत ही रूपवती और पतिव्रता थी। उनके पास सब कुछ होने के बावजूद भी वो दोनों खुश नही थे, क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी।
उन्होने सब तरह के प्रयत्न किये, मंदिरों में पाठ-पूजा, हवन आदि भी करायें। बार बार ईश्वर से सन्तान की कामना करते रहे। बहुत मुश्किलों के बाद उन्हे ईश्वर की कृपा से एक पुत्र प्राप्त हुआ। जिसे पाकर वो बहुत खुश हुए। परंतु ये खुशी ज्यादा दिन नही चली। जब उन्होने उसकी जन्मकुण्ड़ली एक महान पण्ड़ित को दिखाई तो उन्हे पता चला की उनका पुत्र अल्पायु है और मात्र सोलह वर्ष की आयु में साँप के द्वारा काटे जाने से उसकी मृत्यु हो जायेगी। उन्होने उन महत्मा से प्रार्थना की और उपाय बताने को कहा जिससे उनका पुत्र दीर्धजीवी हो।
तब उस महात्मा ने बताया की तुम अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करो जिसकी कुण्ड़ली में वैधव्य का दोष न हो। फिर उससे मंगला गौरी व्रत कराओं। इससे तुम्हारे पुत्र के प्राणों पर आया संकट टल जायेगा।
उस व्यापारी ने बहुत ढ़ूंढ़ कर एक ऐसी कन्या खोज निकाली जिसकी जन्मकुण्ड़ली में अखंड़ सौभाग्यवती होने का योग था। उसने अपने पुत्र का विवाह उस कन्या से करा दिया। और उससे मंगला गौरी व्रत करने के लिये कहा। उस कन्या ने अपने पति की लम्बी आयु के लिये उस व्रत का अनुष्ठान किया।
उसने अपने विवाह से पूरे पांच वर्ष तक के लिये इस व्रत का संकल्प लिया और उसके बाद इसका उद्यापन किया।
इस व्रत के प्रभाव से उस कन्या के पति का अकाल मृत्यु का दोष समाप्त हो गया और वो दीर्धायु हुआ। इस प्रकार जो भी स्त्री इस व्रत को विधि-विधान से करेगी, उस पर माँ गौरी और भगवान शंकर की कृपा होगी। उसके घर-परिवार में सुख-समृद्धि आयेगी और उसके पति कि आयु लम्बी होगी।
Mangla Gauri Vrat Ka Udyapan
मंगला गौरी व्रत का उद्यापन
मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) का उद्यापन बीस या सोलह मंगलवार करने के बाद करें। मंगला गौरी के व्रत के उद्यापन के दिन कुछ भी न खायें। हाथों में मेंहदी लगाएँ। मंगला गौरी व्रत के उद्यापन की पूजा चार योग्य ब्राह्मणों से करायें।
Udyapan Ki Vidhi
उद्यापन की विधि
• संध्या के समय सिर के साथ स्नान करके पति के साथ गठजोड़े से पूजा करें।
• पूजा स्थान पर एक पाटा लगायें और उसके चारों पायों (पैरों) से केले का खाभा बांध दें।
• ओढ़नी या चादर से एक मण्ड़प का निर्माण करें। फिर उस मण्ड़प में कलश रखकर उस कलश को ऊपर से कटोरी रखकर ढककर उसमें सोने की मंगला गौरी बनावा कर रखें।
• मंगला गौरी माता (Mangala Gauri) को साड़ी, ब्लाउज, ओढनी उढ़ाये और नथ पहनायें साथ ही सुहाग की चीजें जैसे मेंहदी, काजल, सिंदूर, चूड़ी आदि चढ़ाएं।
• चाँदी की सिल एवं सोने का लोटा बनाकर पूजन में रखें। हवन करें, कहानी सुने और फिर माता की आरती करें।
• मंगलवार को मंगला गौरी की पूजन के बाद माता के भजन गायें। कीर्तन करें।
• चारों ब्राह्मण को पीतल के चार भगोने में चावल व रुपया रखकर दें।
• सोलह चाँदी के दीपक और उसमें सोने की बत्ती डाले। उसके बाद चाँदी के थाल में आटे से बनें सोलह लड्डू, एक साड़ी व ब्लाउज और दक्षिणा रखकर अपनी सासुजी को दे और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करें।
• जिन चार ब्राह्मणों से पूजन करायी थी उन्हे भोजन कराकर धोती, कुर्ता, अंगोछा, माला व लोटा और दक्षिणा देकर विदा करें।
इस प्रकार मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) का उद्यापन करें। विधि पूर्वक इस व्रत और उद्यापन को करने वाली महिलाओं को माँ पार्वती और शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत बहुत ही शुभ फलदायी है। सावन मास में भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजन करने से विशेष पुण्यफल प्राप्त होता है।
Mangala Gauri Vrat Ke Sawan Ke Mangalwar
मंगला गौरी व्रत के सावन के मंगलवार
विध-विधान के साथ सावन के इन मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) एवं पूजन करें।
23 जुलाई – सावन का पहला मंगलवार
30 जुलाई – सावन का दूसरा मंगलवार
6 अगस्त – सावन का तीसरा मंगलवार
13 अगस्त – सावन का चौथा मंगलवार