भगवान शिव और शनिदेव दोनों की कृपा पाने के लिये करें शनि प्रदोष (Shani Pradosh) का व्रत एवं पूजन। विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत एवं पूजन करने से शनि देव प्रसन्न होते है। इस व्रत के शुभ प्रभाव से उत्तम सन्तान की प्राप्ति होती है। जानियें शनि प्रदोष कब है?, शनि प्रदोष व्रत का महत्व, व्रत की विधि और साथ ही पढ़ियें शनि प्रदोष व्रत कथा।
वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख
Shani Pradosh Vrat
शनि प्रदोष व्रत
हर माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता हैं। प्रदोष व्रत कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष दोनों में किया जाता हैं। जब प्रदोष व्रत शनिवार के दिन किया जाता है उसे शनि प्रदोष (Shani Pradosh) कहते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि प्रदोष (Shani Pradosh) का व्रत करने से जातक को शनि देव की अनुकूलता प्राप्त होती हैं। उसे शनि देव की कृपा प्राप्त होती हैं और उसकी शनिदेव के प्रकोप से उसकी रक्षा होती हैं। शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने बाद शनि देव का पूजन भी करनी चाहियें।
Shani Pradosh Vrat Kab Hai?
शनि प्रदोष व्रत कब हैं?
इस वर्ष में होने वाले शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh)। इनकी तारीख इस प्रकार है –
17 अगस्त, 2024 (सावन मास शुक्लपक्ष त्रयोदशी)
31 अगस्त, 2024 (भाद्रपद मास कृष्णपक्ष त्रयोदशी)
28 दिसम्बर, 2024 (पौष मास कृष्णपक्ष त्रयोदशी)
11 जनवरी, 2025 (पौष मास शुक्लपक्ष त्रयोदशी)
Significance Of Shani Pradosh Vrat
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव शिवलिंग में अवतरित होते हैं। उस समय उनकी पूजा करने से जातक को भगवान शिव की कृपा से विशेष लाभ होता हैं।
इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से जातक के सभी पापों का शमन होता हैं। वो अपने पापों से मुक्त होकर मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त करता हैं। प्रदोष का व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष दिलाने वाला हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार एक प्रदोष का व्रत करने से जातक को दो गायों के दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती हैं।
शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh) करने से जातक को भगवान शिव के साथ शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होती हैं। इस दिन का व्रत करने से
- जातक के जीवन में आने वाली परेशानियों का नाश होता हैं।
- शनिदेव की शुभता प्राप्त होती हैं और जातक की शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से रक्षा होती हैं।
- धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
- परिवार में सुख-शांति रहती हैं।
- उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
Shani Trayodashi Vrat Aur Pujan Vidhi
शनि त्रयोदशी व्रत एवं पूजन विधि
शनि प्रदोष के दिन सुबह और शाम दोनों समय भगवान शिव की पूजा किये जाने का विधान हैं। संध्या के समय भगवान शिव की पूजन के पश्चात् शनिदेव की पूजा की जाती हैं।
- शनि प्रदोष (Shani Pradosh) के दिन प्रात:काल स्नानदि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुये शिवालय जाकर दूध एवं गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें। फिर चंदन से तिलक करें, बेलपत्र, फूलमाला और फल आदि अर्पित करें।
- धूप-दीप जलाकर भगवान की आरती करें।
- भगवान शिव को भोग अर्पित करें।
- शनि प्रदोष व्रत की कथा पढ़े या सुनें।
- संध्या के समय (प्रदोष काल में) दुबारा भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें। चंदन से तिलक करें। बेलपत्र चढ़ायें, फल-फूल अर्पित करें। भोग लगायें।
- धूप-दीप जलाकर शिव ताण्ड़व स्त्रोत्र का पाठ करें। फिर भगवान शिव की आरती करें।
- इसके बाद शनि मंदिर जाकर शनिदेव की पूजा करें। शनि स्त्रोत्र का पाठ करें।
- इसदिन यदि सम्भव हो तो निराहार रहकर व्रत करें अन्यथा संध्या की पूजा के बाद एक समय भोजन कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि के लिये क्लिक करें।
Shani Pradosh Vrat Katha
शनि प्रदोष व्रत कथा
एक पौराणिक कथा अनुसार एक नगर में एक बहुत धनवान साहूकार निवास करता था। उस साहूकार के पास अपार धन-सम्पत्ति थी, उसके पास किसी चीज की कोई कमी नही थी। किंतु उसके कोई संतान नही थी। इसलिये वो और उसकी पत्नी बहुत दुखी थे।
संतानहीनता के दुख से दुखी होकर अपना सारा व्यवसाय नौकरों को सौंप कर साहूकार अपनी स्त्री के साथ तीर्थस्थानों की यात्रा करने के लिये चल दिया। तीर्थ यात्रा करते हुये वो एक ऋषि के आश्रम में पहुँचे। ऋषिवर ध्यानमग्न थे। साहूकार और उसकी पत्नी ऋषि के ध्यान से उठने की प्रतिक्षा करने लगें। जब ऋषि ने आँख खोली तो साहूकार और उसकी स्त्री को सामने बैठा पाया।
साहूकार उनसे कुछ कहता इससे पहले ही ऋषि ने साहूकार से कहा, “वत्स! मैं तुम्हारा दुख जानता हूँ। तुम शनि प्रदोष का व्रत करों। इसके प्रभाव से तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी।“ ऐसा कहकर ऋषि ने साहूकार को व्रत की सारी विधि बताई और साथ ही भगवान शिव की यह वंदना करने के लिये कहा।
शिव जी वंदना –
हे रुद्रदेव! शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।
हे नीलकंठ! सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।
हे उमाकांत! सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।
ईशान ईश! प्रभु नमस्कार।
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।
ऋषि से सारी विधि जानकर साहूकार और उसकी स्त्री ने उनसे आशीर्वाद लिया और बड़ी प्रसन्नता के साथ अपनी तीर्थयात्रा समाप्त की। तीर्थयात्रा समाप्त करने के बाद अपने नगर पहुँचकर उन्होने शनि प्रदोष का व्रत एवं पूजन किया। इस व्रत के प्रभाव से उनको उत्तम संतान की प्राप्ति हुई।