दिवाली के अगले दिन होने वाली गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) को अन्नकूट (Annakuta) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गोवर्धन पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। जानियेंं कब होगी गोवर्धन पूजा? साथ ही पढ़ियें क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा (Why we perform Govardhan Puja)? गोवर्धन पूजा का महत्व (Significance Of Govardhan Puja)? और गोवर्धन पूजा की विधि एवं कथा।
Govardhan Puja 2024
गोवर्धन पूजा 2024
कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) की जाती हैं। इसे अन्नकूट (Annakuta) के नाम से भी जाना जाता हैं। दीपावली के अगले दिन प्रात:काल अन्नकूट बनाया जाता हैं, जिसमें मूंग, चावल, कढ़ी, अन्नकूट की विशेष सब्जी, मिठाई आदि बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता हैं। ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता हैं और अन्नकूट (Annakuta) का प्रसाद लोगों को बांटा जाता हैं। बहुत से मंदिरों में इस दिन छप्पन भोग की झांकी सजायी जाती हैं। कुछ लोग अपने घर पर भी छप्पन भोग की रसोई का आयोजन करते हैं।
Govardhan Puja Kab Hai?
गोवर्धन पूजा कब हैं?
इस वर्ष गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) 2 नवम्बर, 2024 शनिवार के दिन की जायेगी।
Significance Of Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा का महत्व
हिंदु धर्म में गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का बहुत महत्व हैं। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की रसोई की जाती हैं। इस दिन को गुजरात में गुजराती नववर्ष के रूप में मनाया जाता हैं और महाराष्ट्र में बलि पड़वा के रूप में मनाया जाता हैं।
गोवर्धन पूजा का सम्बंध द्वापर युग से हैं। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने कंस का वध करने के लिये श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था, तब उनके बाल्यकाल में उन्होने गोकुल वासियों की रक्षा के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर देवराज इंद्र का अभिमान तोड़ा था।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) वाले दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है और फिर उसकी पूजा की जाती हैं। इस दिन गोवंश की पूजा भी की जाती हैं। इस दिन गौमाता की पूजा करने से जातक के सभी पापों का शमन होता और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
Puja Ki Vidhi
पूजा की विधि
- दीवाली के अगले दिन प्रात:काल अपने शरीर पर तेल लगाकर स्नान करें।
- फिर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उस दिन के शुभ मुहूर्त में उसकी पूजा करें।
- उस पर पेड़-पौधे लगाये। साथ में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा लगायें।
- पूजा के लिये एक कलश में जल लेकर गोवर्धन पर जल अर्पित करें।
- रोली चावल से छींटे लगाकर मौली चढ़ायें। फल-फूल अर्पित करें।
- दीपक जलायें।
- साबुत मूंग, चावल, दही, अन्नकूट की सब्जी आदि का भोग लगायें। कुछ घरों में अहोई अष्टमी की पूजा में मूंग और चावल रखे जाते है और वही अन्नकूट के दिन बनाये जाते हैं।
- गोवर्धन की कहानी कहे या सुनें।
- गिरिराज चालीसा का पाठ करेंं और गिरिराज जी की आरती करें।
- ब्राह्मण को भोजन कराये और अन्नकूट (Annakuta) का प्रसाद बांटें।
Govardhan Ki Katha
गोवर्धन की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण गोकुल में अपनी बाल लीलायें कर रहे थें। तब एक समय भगवान कृष्ण ने देखा सभी ब्रजवासी मिलकर इन्द्र देव की पूजा करने के लिये खूब जोर-शोर से तैयारी कर रहे थें। विभिन्न प्रकार के मिष्ठान बनाये जा रहे थे। तब श्री कृष्ण ने उनसे पूछा कि यह आप किस की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। तब सभी गोप बोले हम देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं।
तब श्री कृष्ण ने उनसे पूछा हम उनकी पूजा क्यों कर रहे हो? तब उन्होने उत्तर दिया कि इंद्रदेव की ही कृपा से वर्षा होती है, जिससे खेतों में फसल होती है, हमें भोजन के लिये अन्न और पशुओं को चारा मिलता हैं। उन्ही की कृपा से हम सभी की जीविका चलती हैं। तब श्री कृष्ण ने कहा प्रत्यक्ष रूप से तो हमारी जीविका चलाने वाला यह गोवर्धन पर्वत हैं। इसी से हमें ईधन मिलता है, इसी से वर्षा होती हैं और हमारे पशुओं को चारा मिलता हैं। भगवान श्री कृष्ण ने अपने तर्कों से यह सिद्ध कर दिया कि ब्रजवासियों के लिये देवराज इंद्र को पूजने से गोवर्धन को पूजना अधिक श्रेष्ठ हैं।
ब्रजवासियों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गिरिराज जी (गोवर्धन) जी की पूजा की। उनकी पूजन से गिरिराज जी बहुत प्रसन्न हुयें। तभी वहाँ पर नारद जी आ पहुँचे और देवराज इंद्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा होते देखकर उन्होने जाकर देवराज इंद्र को बताया कि गोकुल वासी आपके स्थान पर गिरिराज जी की पूजा कर रहे हैं। यह सुनकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गयें और उन्होने ब्रज में मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी।
असमय बारिश देखकर सभी ब्रजवासी घबरा गये और श्री कृष्ण के पास पहुँचे। तब भगवान श्री कृष्ण ने सभी ब्रजबवासियों को गोवर्धन की शरण में जाने का सुझाव दिया और अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों को इन्द्र देव के क्रोध से बचाया। पूरे 7 दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाये रखा और सभी ब्रजवासियों की सुरक्षा की। यह देखकर देवराज इंद्र समझ गये कि यह भगवान श्री कृष्ण की लीला है और वो अपना अहंकार त्यागकर श्री कृष्ण की शरण में आगयें। तभी से गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) आरम्भ हुई।
Related post
Click here to listen Shri Giriraj Ji Ki Aarti (श्री गिरिराज जी की आरती) – Aarti goverdhan maharaj ki