जब प्रदोष व्रत बुधवार के दिन हो तो उसे बुध प्रदोषम या बुध प्रदोष (Budh Pradosh) कहते हैं। इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) को करने से जातक की सभी कामनायें पूर्ण होती हैं। बुध प्रदोष व्रत कथा (Budh Pradosh Vrat Katha) के साथ पढ़ियें बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) का महत्व…
वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख
Budh Pradosh Vrat Kab hai?
बुध प्रदोष व्रत कब है?
इस वर्ष बुध प्रदोष व्रत 19 जून, 2024, (ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष), 3 जुलाई, 2024 (आषाढ़ मास कृष्णपक्ष) और 13 नवम्बर, 2024 (कार्तिक मास शुक्लपक्ष) को रहेगा।
Significance Of Budh Pradosh Vrat
बुध प्रदोष व्रत का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) करने से जातक को सौ गायों के दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। बुध प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat) करने से मनुष्य के मन में संतोष का भाव आता है जिससे उसका जीवन सुखी बनता है। इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बुध प्रदोष व्रत में हरी वस्तुओं का उपयोग करें। विधि विधान से भगवान शिव जी की पूजा करें और बुध प्रदोष व्रत कथा (Budh Pradosh Vrat Katha) कहें या सुनें।
Budh Pradosh Vrat Katha
बुध प्रदोष व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है एक नव विवाहित युवक की स्त्री विवाह के 2 दिन पश्चात् अपने मायके चली गई। मायके में कुछ दिन रहने के पश्चात् उसका पति उसे विदा कराने के लिये पहुँचा। ससुराल में उसका बहुत आदर सत्कार हुआ। फिर उस युवक ने अपनी पत्नी को बुधवार के दिन लेकर जाने की बात कही। ससुराल वालों ने उसे बहुत समझाया कि बुधवार के दिन बेटी को विदा करना शुभ नही माना जाता किंतु वह नही माना और बुधवार के ही दिन अपनी पत्नी को लेकर अपने घर के लिये चल दिया।
सकुशल यात्रा करते हुये वो नगर के निकट पहुंचे तो वहाँ उसकी पत्नी प्यास से व्याकुल हो उठी उसने अपने पति से कहा की मुझे बहुत प्यास लगी। थोड़ा पानी ला दो। वो युवक अपनी पत्नी को एक वृक्ष के नीचे बिठाकर लोटा लेकर पानी लेने के लिये चल दिया। थोड़ा ढ़ूंढ़ने के पश्चात् उसे पानी मिल गया। उसने लोटे में पानी भरा और उसे लेकर वापस अपनी पत्नी के पास लौटा। कुछ दूर से उसने देखा की उसकी पत्नी किसी पुरूष से बहुत हँस-हँस कर बात कर रही है और उसके लोटे से पानी भी पी रही है। यह देखकर वो क्रोध और ईर्ष्या से भर गया। क्रोध से भरकर जब वो अपनी पत्नी के पास पहुँचा तो वो आश्चर्यचकित हो गया। वो आदमी दिखने में हूबहू उसके जैसा था। अपने पति की शक्ल के दूसरे आदमी को देखकर वो स्त्री भी अचम्भें में पड़ गई। वो दोनों हमशक्ल युवक आपस में लड़ने लगे। उन दोनों को लड़ता देखकर वहाँ भी भीड़ इकट्ठी हो गई। थोडी देर में सिपाही भी वहाँ आ गए। सभी लोग एक जैसी शक्ल के दो युवको देखकर आश्चर्य में पड़ गए। दोनों ही उसे स्त्री को अपनी पत्नी बता रहे थे।
वहाँ उपस्थित लोगों ने उस स्त्री से पूछा की इन दोनो में से तुम्हारा पति कौन है? तो वो भी दुविधा के कारण कुछ ना कह सकी। उस स्त्री का पति भगवान शंकर का भक्त था। ऐसी विपत्ती में फँसने के बाद उसे अपनी भूल का अहसास हुआ कि अपने सास-ससुर की बुधवार के दिन बेटी विदा ना करने की बात ना मानकर उसने गलती की है। उस युवक ने अपने आराध्य भगवान शिव को याद दिया। और उनसे प्रार्थना की। वो बोला- “हे भगवन मेरी इस भूल को क्षमा करें। मैं भविष्य में कभी भी ऐसी गलती दोबारा नही करूँगा। कृपया मेरी रक्षा करो और मुझे इस विपत्ती से मुक्त कराओं।“
अपने भक्त की भक्तियुक्त प्रार्थना सुनकर भगवान भोलेनाथ ने उसकी कामना पूरी कर दी। वो दूसरा पुरुष स्वत: ही वहाँ से अंतर्ध्यान हो गया। उसके बाद वो दोनों पति-पत्नी कुशलतापूर्वक अपने घर पहुंच गए। उस दिन बुध प्रदोष का दिन था। तब से उस नवविवाहित जोड़ें ने नियमपूर्वक प्रदोष व्रत (त्रयोदशी व्रत) करना आरम्भ कर दिया। प्रदोष व्रत हर मनुष्य को रखना चाहिये। जिस दिन प्रदोष व्रत हो उस दिन के अनुसार प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना चाहिये।