शत्रुओं पर विजय और कार्यों में सफलता दिलवाता है बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa) का पाठ

Baglamukhi Chalisa; Mata Baglamukhi;

बगलामुखी चालीसा का नित्य पाठ करने से माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त होती है। इस चालीसा का पाठ सभी शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला और हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला है। पढ़ियें बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa 2) का पाठ करने की विधि और लाभ…

Baglamukhi Chalisa Ki Vidhi
बगलामुखी चालीसा का पाठ कैसे करें?

  • माँ बगलामुखी की पूजा रात्रि में किये जाने का विधान है।
  • इस लिये संध्या:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • माँ बगलामुखी की उपासना के लिये शरीर और मन दोनों स्वच्छ होना आवश्यक है।
  • वैसे तो माता बगलामुखी की उपासना की दीक्षा ली जाती है पर आप बिना दीक्षा के भी बगलामुखी चालीसा का पाठ कर सकते है। दीक्षा उपरांत उपासना करने से उसका फल अतिशीघ्र प्राप्त होता है।
  • सूर्यास्त के बाद रात के समय (9 बजे के आसपास ) पूजास्थान पर पीले वस्त्र धारण करके पीले आसन पर बैठ कर सरसों के तेल का दीपक जलाकर अपने गुरू, भगवान गणेश और भगवान भैरव का ध्यान करके माता बगलामुखी का ध्यान करें।
  • माता को हल्दी, पीले पुष्प, पीले फल और पीली मिठाई का भोग अर्पित करें।
  • बगलामुखी चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ करने के बाद रूद्राक्ष की माला पर 108 बार इस मंत्र का जाप करें। मंत्र – “हौं जूं स: “
  • इसके पश्चात माता बगलामुखी की आरती करें और उनसे अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगेंं और अपनी मनोकामना कहें।

Benefits of Reading Baglamukhi Chalisa
बगलामुखी चालीसा का पाठ करने के लाभ

माता बगलामुखी अपने भक्तों पर विशेष अनुराग रखती है। जो भी पवित्र मन से उनकी उपासना पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ करता है उसे माँ का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। बगलामुखी चालीसा का विधि अनुसार नित्य पाठ करने से

  • जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है।
  • जातक शत्रु से सुरक्षित होता है और शत्रु का भय समाप्त हो जाता है।
  • साधक अपने विरोधियों के लिये सदा ही अजेय बना रहता है।
  • माँ बगलामुखी की कृपा प्राप्त होती है।
  • मनोरथ सिद्ध होता है।
  • संकट दूर होते है।
  • कार्य आसानी से सिद्ध होते है।
  • जीवन और विचारों में सकारात्मकता आती है और नकारात्मकता दूर होती है।
  • साधक नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रहता है।
  • यदि किसी ने कोई अभिचारक प्रयोग अर्थात तंत्र इत्यादि किया हो तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो जाता है।
  • धन-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • व्यापार और नौकरी के क्षेत्र में सफलता मिलती है।
  • रोगों का नाश होता है और साधक दीर्धायु होता है।
  • अकाल मृत्यु का भय नही रहता।
  • अदालती मामलों में जीत मिलती है।

Baglamukhi Chalisa Lyrics
बगलामुखी चालीसा

॥दोहा॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखू चालीसा आज।
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज॥

॥चौपाई॥

जय जय जय श्री बगला माता, आदिशक्ति सब जग की त्राता।
बगला सम तब आनन माता, एहि ते भयउ नाम विख्याता।
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी, अस्तुति करहिं देव नरनारी।
पीतवसन तन पर तव राजै, हाथहिं मुद्गर गदा विराजै।
तीन नयन गल चम्पक माला, अमित तेज प्रकटत है भाला।
रत्न-जटित सिंहासन सोहै, शोभा निरखि सकल जन मोहै।
आसन पीतवर्ण महरानी, भक्तन की तुम हो वरदानी।
पीताभूषण पीतहिं चन्दन, सुर नर नाग करत सब वन्दन।
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै, वेद पुराण सन्त अस भाखै।
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा, जाके किये होत दुखनाशा।
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै, पीतवसन देवी पहिरावै।
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन, अबिर गुलाल सुपारी चन्दन।
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना, सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना।
धूप दीप कपूर की बाती, प्रेमसहित तब करै आरती।
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे, पुरवहु मातु मनोरथ मोरे।
मातु भगति तब सब सुख खानी, करहु कृपा मोपर जनजानी।
त्रिविध ताप सब दुःख नशावहु, तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु।
बारबार मैं बिनवउँ तोहीं, अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं।
पूजनान्त में हवन करावै, सो नर मनवांछित फल पावै।
सर्षप होम करै जो कोई, ताके वश सचराचर होई।
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै, भक्ति प्रेम से हवन करावै।
दुःख दरिद्र व्यापै नहिं सोई, निश्चय सुखसंपति सब होई।
फूल अशोक हवन जो करई, ताके गृह सुखसम्पति भरई।
फल सेमर का होम करीजै, निश्चय वाको रिपु सब छीजै।
गुग्गुल घृत होमै जो कोई, तेहि के वश में राजा होई।
गग्गुल तिल सँग होम करावै, ताको सकल बन्ध कट जावै।
बीजाक्षर का पाठ जो करहीं, बीजमन्त्र तुम्हरो उच्चरहीं।
एक मास निशि जो कर जापा, तेहि कर मिटत सकल सन्तापा।
घर की शुद्ध भूमि जहँ होई, साधक जाप करै तहँ सोई।
सोइ इच्छित फल निश्चय पावै, यामे नहिं कछु संशय लावै।
अथवा तीर नदी के जाई, साधक जाप करै मन लाई।
दस सहस्र जप करै जो कोई, सकल काज तेहि कर सिधि होई।
जाप करै जो लक्षहिं बारा, ताकर होय सुयश विस्तारा।
जो तव नाम जपै मन लाई, अल्पकाल महँ रिपुहिं नसाई।
सप्तरात्रि जो जापहिं नामा, वाको पूरन हो सब कामा।
नव दिन जाप करे जो कोई, व्याधि रहित ताकर तन होई।
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी, पावै पुत्रादिक फल चारी।
प्रातः सायं अरु मध्याना, धरे ध्यान होवै कल्याना।
कहँ लगि महिमा कहौं तिहारी, नाम सदा शुभ मंगलकारी।
पाठ करै जो नित्य चालीसा, तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा।

॥दोहा॥

सन्तशरण को तनय हूँ, कुलपति मिश्र सुनाम।
हरिद्वार मण्डल बसूँ, धाम हरिपुर ग्राम॥
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास।
चालीसा रचना कियौं, तव चरणन को दास ॥