Batuk Bhairav Stotra : जीवन की समस्याओं और शत्रुओं के नाश हेतु करें बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ

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बटुक भैरव को भगवान शिव का रूप माना जाता है। बटुक भैरव की आराधना से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं का निवारण होता है। बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) का पाठ करके साधक के जीवन की हर बाधा दूर होती है और मनोकामना पूर्ण होती है| जानिये बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कैसे करें? और इसको करने से क्या लाभ होता है? साथ ही पढ़ें श्री बटुक भैरव स्तोत्र…

When and how to recite Batuk Bhairav Stotra?
बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?

  • बटुक भैरव जयंती और भैरव अष्टमी के दिन और हर शनिवार को श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) का पाठ करें।
  • प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ सफ़ेद वस्त्र धारण करें।
  • भगवान बटुक भैरव के मंदिर जाकर पूजा करें।
  • भगवान बटुक भैरव देव को सफ़ेद फूल और केला अर्पित करे। लड्डू और पंचामृत चढ़ाएं। यह सब चढ़ाते हुये इस मंत्र का जाप करते रहें। मंत्र – “ॐ बटुक भैरवाय नमः”।
  • फिर बटुक भैरव स्तोत्र (श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली ) का पाठ करें।
  • आरती करें।
  • गरीबों को प्रसाद बाँटें।

Benefits of Batuk Bhairav Stotra
बटुक भैरव स्तोत्र के लाभ

जो जातक इस बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra) का पाठ पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ करता है उसे भगवान बटुक भैरव की कृपा प्राप्त होती है। भगवान भैरव की कृपा से

  • उसका कोई भी बुरी शक्ति कुछ भी नही बिगाड़ सकती।
  • साधक को भूत-प्रेत का कोई भय नही रहता। शत्रुओं का नाश होता है जिससे शत्रु भय समाप्त हो जाता है।
  • पापों और दुखों का शमन होता है। आरोग्य की प्राप्ति होती है।
  • ग्रह दोषों का दुष्प्रभाव कम होता है। मनोरथ सिद्ध होता है। समस्त संकटों का नाश होता है।
  • दुर्घटनाओं का भय नही रहता। बन्दी बन्धन से मुक्त हो जाता है। भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  • चित्त में शांति आती है। कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधाओं का नाश होता है और व्यवसाय और नौकरी में प्रगति होती है।

Shri Batuk Bhairav Ashtottara Shatanama Stotram Lyrics
बटुक भैरव स्तोत्र

श्री बटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र

(क) ध्यान

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।

(ख) मानस-पूजन

उक्त प्रकार ‘ध्यान’ करने के बाद श्रीबटुक-भैरव का मानसिक पूजन करे-
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।

(ग) मूल-स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।१

श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।२

कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।३

शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।४

धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।५

कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।६

त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः।।७

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।८

प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।९

अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ।।१०

कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ।।११

शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ।।१२

सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ।।१३

जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ।।१४

।।फल-श्रुति।

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम् ।।१५

य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा ।।१६

न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः ।।१७

मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये ।।१८

बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।।१९

।।क्षमा-प्रार्थना।।

आवाहनङ न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे।।

Batuk Bhairav Bali Mantra: श्री बटुक-बलि-मन्त्र

घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र का उच्चारण करें –

१॰ “ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः।”

२॰ “ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।।”

३॰ “ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः। रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः।।”