Devi Mahatmyam Chapter 10: देवी महात्म्य अध्याय दशम में पढ़ें शुम्भ वध का वर्णन

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देवी महात्म्य के दशम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 10) में शुम्भ के वध का वर्णन मिलता है। जब शुम्भ के द्वारा भेजें गये उसके महापराक्रमी भाई निशुम्भ का माँ अम्बिका ने वध कर दिया। तब दुख और क्रोध से भरकर शुम्भ स्वयं अपनी सम्पूर्ण सेना के साथ माँ अम्बिका से युद्ध के लिये युद्धस्थल पर प्रस्तुत हो गया। इस अध्याय में आप पढ़ेंगे किस प्रकार देवी अम्बिका ने शुम्भ और उसकी सेना का संहार किया।

ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही अद्भुत और शक्तिशाली है। इसके पाठ से साधक के जीवन की समस्त समस्याओं का निवारण होता है। माँ दुर्गा के महिमा अपरम्पार है। दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का वर्णन किया गया है जिसमें देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। और राक्षस महिषासुर का वध करके महिषासुरमर्दिनी कहलाई। दुर्गा सप्तशती का पाठ 13 अध्यायों में बाँटा गया है, इसमे 700 श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य और चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है।

Devi Mahatmyam Chapter 10

॥ श्रीदुर्गासप्तशती – दशमोऽध्यायः ॥

॥ ध्यानम् ॥

ॐ उत्तप्तहेमरुचिरां रविचन्द्रवह्नि-
नेत्रां धनुश्शरयुताङ्‌कुशपाशशूलम्।
रम्यैर्भुजैश्‍च दधतीं शिवशक्तिरूपां
कामेश्‍वरीं हृदि भजामि धृतेन्दुलेखाम्॥

“ॐ” ऋषिरुवाच॥1॥

निशुम्भं निहतं दृष्ट्‌वा भ्रातरं प्राणसम्मितम्।
हन्यमानं बलं चैव शुम्भः क्रुद्धोऽब्रवीद्वचः॥2॥

बलावलेपाद्दुष्टे त्वं मा दुर्गे गर्वमावह।
अन्यासां बलमाश्रित्य युद्ध्यसे यातिमानिनी॥3॥

देव्युवाच॥4॥

एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा।
पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः॥5॥

ततः समस्तास्ता देव्यो ब्रह्माणीप्रमुखा लयम्।
तस्या देव्यास्तनौ जग्मुरेकैवासीत्तदाम्बिका॥6॥

देव्युवाच॥7॥

अहं विभूत्या बहुभिरिह रूपैर्यदास्थिता।
तत्संहृतं मयैकैव तिष्ठाम्याजौ स्थिरो भव॥8॥

ऋषिरुवाच॥9॥

ततः प्रववृते युद्धं देव्याः शुम्भस्य चोभयोः।
पश्यतां सर्वदेवानामसुराणां च दारुणम्॥10॥

शरवर्षैः शितैः शस्त्रैस्तथास्त्रैश्‍चैव दारुणैः।
तयोर्युद्धमभूद्भूयः सर्वलोकभयङ्करम्॥11॥

दिव्यान्यस्त्राणि शतशो मुमुचे यान्यथाम्बिका।
बभञ्ज तानि दैत्येन्द्रस्तत्प्रतीघातकर्तृभिः॥12॥

मुक्तानि तेन चास्त्राणि दिव्यानि परमेश्‍वरी।
बभञ्ज लीलयैवोग्रहुङ्‌कारोच्चारणादिभिः॥13॥

ततः शरशतैर्देवीमाच्छादयत सोऽसुरः।
सापि तत्कुपिता देवी धनुश्‍चिच्छेद चेषुभिः॥14॥

छिन्ने धनुषि दैत्येन्द्रस्तथा शक्तिमथाददे।
चिच्छेद देवी चक्रेण तामप्यस्य करे स्थिताम्॥15॥

ततः खड्‌गमुपादाय शतचन्द्रं च भानुमत्।
अभ्यधावत्तदा देवीं दैत्यानामधिपेश्‍वरः॥16॥

तस्यापतत एवाशु खड्‌गं चिच्छेद चण्डिका।
धनुर्मुक्तैः शितैर्बाणैश्‍चर्म चार्ककरामलम्॥17॥

हताश्‍वः स तदा दैत्यश्‍छिन्नधन्वा विसारथिः।
जग्राह मुद्‌गरं घोरमम्बिकानिधनोद्यतः॥18॥

चिच्छेदापततस्तस्य मुद्‌गरं निशितैः शरैः।
तथापि सोऽभ्यधावत्तां मुष्टिमुद्यम्य वेगवान्॥19॥

स मुष्टिं पातयामास हृदये दैत्यपुङ्‌गवः।
देव्यास्तं चापि सा देवी तलेनोरस्यताडयत्॥20॥

तलप्रहाराभिहतो निपपात महीतले।
स दैत्यराजः सहसा पुनरेव तथोत्थितः॥21॥

उत्पत्य च प्रगृह्योच्चैर्देवीं गगनमास्थितः।
तत्रापि सा निराधारा युयुधे तेन चण्डिका॥22॥

नियुद्धं खे तदा दैत्यश्‍चण्डिका च परस्परम्।
चक्रतुः प्रथमं सिद्धमुनिविस्मयकारकम्॥23॥

ततो नियुद्धं सुचिरं कृत्वा तेनाम्बिका सह।
उत्पात्य भ्रामयामास चिक्षेप धरणीतले॥24॥

स क्षिप्तो धरणीं प्राप्य मुष्टिमुद्यम्य वेगितः।
अभ्यधावत दुष्टात्मा चण्डिकानिधनेच्छया॥25॥

तमायान्तं ततो देवी सर्वदैत्यजनेश्‍वरम्।
जगत्यां पातयामास भित्त्वा शूलेन वक्षसि॥26॥

स गतासुः पपातोर्व्यां देवीशूलाग्रविक्षतः।
चालयन् सकलां पृथ्वीं साब्धिद्वीपां सपर्वताम्॥27॥

ततः प्रसन्नमखिलं हते तस्मिन् दुरात्मनि।
जगत्स्वास्थ्यमतीवाप निर्मलं चाभवन्नभः॥28॥

उत्पातमेघाः सोल्का ये प्रागासंस्ते शमं ययुः।
सरितो मार्गवाहिन्यस्तथासंस्तत्र पातिते॥29॥

ततो देवगणाः सर्वे हर्षनिर्भरमानसाः।
बभूवुर्निहते तस्मिन् गन्धर्वा ललितं जगुः॥30॥

अवादयंस्तथैवान्ये ननृतुश्‍चाप्सरोगणाः।
ववुः पुण्यास्तथा वाताः सुप्रभोऽभूद्दिवाकरः॥31॥

जज्वलुश्‍चाग्नयः शान्ताः शान्ता दिग्जनितस्वनाः॥ॐ॥32॥

॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये शुम्भवधो नाम दशमोऽध्यायः॥१०॥

उवाच ४, अर्धश्‍लोकः १, श्‍लोकाः २७, एवम् ३२, एवमादितः॥५७५ ॥

नोट : देवीमाहात्म्ये के दशम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 10) के बाद देवी माहात्म्य के एकादश अध्याय का पाठ किया जाता है।

दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) के पाठ का क्रम इस प्रकार से है –