देवी महात्म्य अध्याय सप्तम (Devi Mahatmyam Chapter 7) में पढ़ें देवी के द्वारा चण्ड-मुण्ड के वध का वर्णन

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देवी महात्म्य के सप्तम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 7) में चण्ड और मुण्ड के वध का वर्णन किया गया है। जब शुम्भ के द्वारा भेजें धूम्रलोचन को माँ अम्बिका ने उसकी सेना के साथ यमलोक भेज दिया। तब क्रोध से भरे शुम्भ ने अपने सेनापति चण्ड और मुण्ड को माँ अम्बिका के पास भेजा। इस अध्याय में आप पढ़ेंगे किस प्रकार देवी अम्बिका ने चण्ड और मुण्ड का संहार किया।

ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही अद्भुत और शक्तिशाली है। इसके पाठ से साधक के जीवन की समस्त समस्याओं का निवारण होता है। माँ दुर्गा के महिमा अपरम्पार है। दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का वर्णन किया गया है जिसमें देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। और राक्षस महिषासुर का वध करके महिषासुरमर्दिनी कहलाई। दुर्गा सप्तशती का पाठ 13 अध्यायों में बाँटा गया है, इसमे 700 श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य और चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है।

Devi Mahatmyam Chapter 7

॥ श्रीदुर्गासप्तशती – सप्तमोऽध्यायः ॥

॥ ध्यानम् ॥

ॐ ध्यायेयं रत्‍नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्‌गीं
न्यस्तैकाङ्‌घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम्।
कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां
मातङ्‌गीं शङ्‍खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥

“ॐ” ऋषिरुवाच॥1॥

आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्‍चण्डमुण्डपुरोगमाः।
चतुरङ्‍गबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः॥2॥

ददृशुस्ते ततो देवीमीषद्धासां व्यवस्थिताम्।
सिंहस्योपरि शैलेन्द्रशृङ्‌गे महति काञ्चने॥3॥

ते दृष्ट्‌वा तां समादातुमुद्यमं चक्रुरुद्यताः।
आकृष्टचापासिधरास्तथान्ये तत्समीपगाः॥4॥

ततः कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन् प्रति।
कोपेन चास्या वदनं मषीवर्णमभूत्तदा॥5॥

भ्रुकुटीकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद्द्रुतम्।
काली करालवदना विनिष्क्रान्तासिपाशिनी॥6॥

विचित्रखट्‌वाङ्‌गधरा नरमालाविभूषणा।
द्वीपिचर्मपरीधाना शुष्कमांसातिभैरवा॥7॥

अतिविस्तारवदना जिह्वाललनभीषणा।
निमग्नारक्तनयना नादापूरितदिङ्‌मुखा॥8॥

सा वेगेनाभिपतिता घातयन्ती महासुरान्।
सैन्ये तत्र सुरारीणामभक्षयत तद्‌बलम्॥9॥

पार्ष्णिग्राहाङ्‌कुशग्राहियोधघण्टासमन्वितान्।
समादायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वारणान्॥10॥

तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह।
निक्षिप्य वक्त्रे दशनैश्‍चर्वयन्त्यतिभैरवम्॥11॥

एकं जग्राह केशेषु ग्रीवायामथ चापरम्।
पादेनाक्रम्य चैवान्यमुरसान्यमपोथयत्॥12॥

तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि तथासुरैः।
मुखेन जग्राह रुषा दशनैर्मथितान्यपि॥13॥

बलिनां तद् बलं सर्वमसुराणां दुरात्मनाम्।
ममर्दाभक्षयच्चान्यानन्यांश्‍चाताडयत्तथा॥14॥

असिना निहताः केचित्केचित्खट्‌वाङ्‌गताडिताः।
जग्मुर्विनाशमसुरा दन्ताग्राभिहतास्तथा॥15॥

क्षणेन तद् बलं सर्वमसुराणां निपातितम्।
दृष्ट्‌वा चण्डोऽभिदुद्राव तां कालीमतिभीषणाम्॥16॥

शरवर्षैर्महाभीमैर्भीमाक्षीं तां महासुरः।
छादयामास चक्रैश्‍च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः॥17॥

तानि चक्राण्यनेकानि विशमानानि तन्मुखम्।
बभुर्यथार्कबिम्बानि सुबहूनि घनोदरम्॥18॥

ततो जहासातिरुषा भीमं भैरवनादिनी।
कालीकरालवक्त्रान्तर्दुर्दर्शदशनोज्ज्वला॥19॥

उत्थाय च महासिं हं देवी चण्डमधावत।
गृहीत्वा चास्य केशेषु शिरस्तेनासिनाच्छिनत्॥20॥

अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्‌वा चण्डं निपातितम्।
तमप्यपातयद्भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा॥21॥

हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्‌वा चण्डं निपातितम्।
मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो भेजे भयातुरम्॥22॥

शिरश्‍चण्डस्य काली च गृहीत्वा मुण्डमेव च।
प्राह प्रचण्डाट्टहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम्॥23॥

मया तवात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशू।
युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि॥24॥

ऋषिरुवाच॥25॥

तावानीतौ ततो दृष्ट्‌वा चण्डमुण्डौ महासुरौ।
उवाच कालीं कल्याणी ललितं चण्डिका वचः॥26॥

यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता।
चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवि भविष्यसि॥ॐ॥27॥

॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये चण्डमुण्डवधो नाम सप्तमोऽध्यायः॥७॥

उवाच २, श्‍लोकाः २५, एवम् २७, एवमादितः॥४३९ ॥

नोट : देवीमाहात्म्ये के सप्तम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 7) के बाद देवी माहात्म्य के अष्टम अध्याय का पाठ किया जाता है।

दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) के पाठ का क्रम इस प्रकार से है –