कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का महत्व अनंत है…इस दिन करें गंगा स्नान, हवन-पूजन और दान-पुण्य। जानियें कार्तिक पूर्णिमा कब हैं? कार्तिक पूर्णिमा का क्या महत्व हैं? और साथ ही पढ़े कार्तिक पूर्णिमा के व्रत (Kartik Purnima Vrat) एवं पूजन की विधि।
Kartik Purnima
कार्तिक पूर्णिमा
हिंदु पंचांग में कार्तिक का महीना वर्ष का आठवॉ महीना हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के नाम से पुकारा जाता हैं। इसके अतिरिक्त इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima), त्रिपुरी पूर्णिमा और देव दीपावली (Dev Diwali) के नाम से भी जाना जाता हैं। हिंदु धर्म में कार्तिक मास का बहुत महत्व हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का दिन बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता हैं। इस दिन तीर्थ स्थानों पर जाकर स्नान-दान, दीपदान, हवन-पूजन और आरती करने से महान पुण्य प्राप्त होता हैं।
Kartik Purnima Kab Hai?
कार्तिक पूर्णिमा कब हैं?
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का व्रत एवं पूजन 15 नवम्बर, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
Kartik Purnima Ka Mahatva (Mahatamya)
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व (महात्म्य)
हिंदु धर्म शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को बहुत ही शुभ दिन माना गया हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दीपावली मनाते हैं। इसलिये इसे देव-दीपावली (Dev Diwali)) के नाम से भी पुकारा जाता हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। सृष्टि को जलप्रलय से बचाने, वेदों की रक्षा और हयग्रीव नामक असुर के सन्हार के लिये भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत (जिन्हे हम मनु के नाम से जानते हैं) को के मछली के रूप में आकर जलप्रलय के विषय में बताया था। सत्यव्रत को उन्होने कहा कि वो सप्तऋषि, सभी प्रकार की वनस्पति, अनाज और जीवों के साथ जलप्रलय से पूर्व बताये गये नियत स्थान पर पहुँच जाये। जिससे जलप्रलय के बाद सृष्टि का पुन: निर्माण हो सकें।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करके तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था। तारकासुर के वध के बाद उसके तीन पुत्रों ने ब्रह्माजी से वरदान पाकर देवाताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया था। सभी देवताओं ने भगवान शिव से त्रिपुरासुर का वध करने की प्रार्थना की, तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और जिसके कारण भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता हैं। कार्तिक पूर्णिमा को भी त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima) और त्रिपुरी पूर्णिमा (Tripuri Purnima) के नाम से पुकारा जाता हैं।
हिंदु मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन भगवान ब्रह्मा जी राजस्थान के पुष्कर स्थित ब्रह्म सरोवर में अवतरित हुये थे। यहाँ परमपिता ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा जी के अवतरण के कारण, इस दिन ब्रह्म सरोवर में स्नान करना बहुत ही शुभ और पुण्य फलदायी माना जाता हैं। इस दिन यहाँ पर विशेष पूजन का आयोजन किया जाता हैं।
एक धर्म कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन वैकुंठधाम में श्री तुलसी प्रकट हुयी थी। फिर उनका जन्म धरती पर हुआ। इस दिन तुलसी जी की पूजा भी की जाती हैं।
सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन का विशेष महत्व हैं। इस दिन सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरू नानक देव जी का जन्म हुआ था। इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरू नानक देव जी जयन्ती को गुरू पर्व के रूप में मनाते हैं।
इस दिन कार्तिक स्नान (Kartik Snan) का समापन होता हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्थान, नदी या सरोवर पर स्नान करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता हैं। इस दिन गर्म वस्त्र, मिठाई, अनाज और भोजन आदि का दान करना चाहियें।
इस दिन व्रत एवं पूजन करने से
- घर में सुख-समृद्धि आती हैं।
- धन- ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।
- समस्याओं का समाधान होता हैं।
- मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
- साधक सांसारिक सुखों को भोग कर मृत्यु के उपरांत स्वर्ग लोक को प्राप्त करता हैं।
- इस दिन दिये गये दान का पुण्य कई गुणा अधिक होता हैं।
- इस दिन संध्या के समय दीपावली की भांति दीपक जलाने से देवकृपा प्राप्त होती हैं।
क्षीरसागर दान
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन एक विशेष दान किया जाता है जिसे क्षीरसागर दान कहा जाता हैं। इसमें चौबीस अंगुल का बर्तन लेकर उसको दूध भरा जाता है फिर उसमें एक सोने या चांदी की मछली ड़ालकर उसे किसी योग्य ब्राह्मण को दिया जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस क्षीरसागर दान का महत्व अनंत हैं।
Kartik Purnima Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
कार्तिक पूर्णिमा व्रत एवं पूजन की विधि
- कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन प्रात:काल गंगा नदी या किसी अन्य तीर्थ स्थान पर स्नान करें। यदि ऐसा करना सम्भव ना हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्थान करें और इस स्नान मंत्र का जाप करें।
मंत्र- गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरुम्॥
- इसके बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
- फिर शिवालय जाकर “ॐ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करते हुये भगवान शिव का दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। साथ ही देवी पार्वती जी, कार्तिकेय जी, गणेश जी और नंदी जी की पूजा करें। फिर कपूर जलाकर आरती करें।
- तुलसी जी के जल चढ़ायें।
- हनुमान जी के समक्ष बैठकर दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- घर के पूजास्थान पर बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करें। धूप-दीप जलाकर भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करें।
- चंदन लगाये और रोली से तिलक करें। फिर अक्षत लगायें।
- फल-फूल अर्पित करें। भोग लगायें।
- फिर मत्स्य स्त्रोत्रम् और मत्स्यस्तुति का पाठ करें। भगवान विष्णु की आरती करें।
- संध्या के समय सत्यनारायण भगवान की कथा करें।
- इस दिन दीपावली की ही भांति दीपदान करें।
- फिर ब्राह्मण को भोजन करायें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।
विशेष : कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन चंद्रोदय के समय छ: कृतिकाओं का पूजन किया जाता हैं। ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। जिन छ: कृतिकाओं की पूजा की जाती है उनका नाम है – शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा।
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