भगवान श्री हरि विष्णु इस सृष्टि के पालनकर्ता है। वो समय-समय पर अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिये भिन्न –भिन्न रूप में अवतार लेते है। क्या आपको उनके पंचायुध के विषय मे जानकारी है? भगवान विष्णु के पाँच हथियार (Five Divine Weapons of Lord Vishnu) जिनकी स्तुति की जाती है। जानिये वो कौन से चमत्कारिक अस्त्र है जिनकी स्तुति करने से मनुष्य सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है।
Lord Vishnu
भगवान विष्णु
हिन्दू धर्म में श्री हरि भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा जाता है। विष्णु जी त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी में से एक है। वैष्णववाद के अंतर्गत भगवान विष्णु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उसके अनुसार वही है जो ब्रह्मांड की रचना, रक्षा और इसमें होने वाले परिवर्तन के कारक हैं।
पौराणिक कथाओं में भगवान विष्णु के दो रूपों में चित्रित किया गया है। एक है परोपकारी स्वरूप जिसमें वे एक सर्वज्ञ, सृष्टि के पालनकर्ता, अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में शेष शैया पर योगनिन्द्रा में लीन है। दूसरा उनक विराट स्वरूप है जिसमें समस्त ब्रह्माण्ड़ उनके अन्दर समाया हुआ है, समस्त जीव उनसे जन्म लेकर उन्ही में समा जाते है। अनेकोनेक मुख और पंचायुध धारण (Five Divine Weapons of Lord Vishnu) किये अत्यंत तेजोमय विकराल स्वरूप जिसे देखकर कोई भी भयभीत हो जाये।
पृथ्वी पर जब भी अधर्म, अनाचार, बुराई, अराजकता और विनाशकारी शक्तियाँ बढ़ने लगती हैं तब सज्जनों की रक्षा के लिये और उन दुष्ट शक्तियों को समाप्त करके धर्म की स्थापना के लिये भगवान विष्णु भिन्न-भिन्न रूप में अवतार लेते है। पुराणों में भगवान विष्णु के दशावतार का उल्लेख हैं। इन दस अवतारों में श्री राम और श्री कृष्ण अवतार को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया हैं।
Which Are The Five Divine Weapons of Lord Vishnu?
भगवान विष्णु के पञ्चायुध कौन से है?
पञ्चायुध स्तोत्रम् में भगवान विष्णु के जिन पाँच आयुधों (Five Divine Weapons of Lord Vishnu) अर्थात हथियारों का उल्लेख और स्तुति की गई है वो इस प्रकार है:
- सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra)– इसका निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा किया गया था। यह एक अमोघ अस्त्र है। भगवान विष्णु ने भगवान शंकर की तपस्या करके इसे प्राप्त किया था। भगवान शिव ने यह चक्र भगवान विष्णु को दिया था। इसके द्वारा भगवान विष्णु असुरों का सन्हार करते है। यह चक्र लक्ष्य का भेद करके पुन: वापस आ जाता है। इसे भगवान विष्णु अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में धारण करते है। इसके स्वरूप के विषय में बताया गया है कि सुदर्शन चक्र में दो पंक्तियों में लाखों नुकीली कील जैसे आकृतियाँ है जो इसके किनारों को दांतेदार बनाती है। यह दोनों विपरीत दिशाओं में घूमती हैं। सुदर्शन चक्र को ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली अस्त्र माना गया है।
- पाञ्चजन्य शंख (Panchajanya Conch) – इस शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था तब पाञ्चजन्य नामक असुर का वध करके इसे प्राप्त किया था। ऐसा कहा जाता है कि पांचजन्य शंख बजाने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उससे वातावरण से सभी प्रकार की नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। पाञ्चजन्य शंख समृद्धि, सद्भाव, धन और भौतिक उपलब्धियाँ लाता है। महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने इस शंख को बजाया था। इसे भगवान विष्णु ने अपने ऊपर वाले बायें हाथ में धारण किया हुआ है।
- कौमोदकी गदा (Kaumodaki Gada) – शास्त्रों के अनुसार कौमोदकी गदा का निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा किया गया था। महाभारत काल में अग्निदेव से यह गदा श्री कृष्ण को प्राप्त हुई थी। अग्निदेव को कौमोदकी गदा वरूण देव से प्राप्त हुई थी। इस गदा को भगवान विष्णु ने अपने निचले दाहिने हाथ में धारण किया है। इसे मेरु पर्वत का अवतार भी माना जाता है। समस्त प्रकार की बुराइयों को दूर करने के लिये इसे धारण किया है।
- शारंग (सारंग) धनुष (Sharanga Bow) – भगवान विष्णु के धनुष का नाम शारंग है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार इस धनुष का निर्माण ब्रह्मा जी के कहने पर देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा के द्वारा किया गया था। भगवान विष्णु ने यह धनुष ऋषि ऋचिक को दे दिया। तत्पश्चात् शारंग धनुष ऋषि ऋचिक से उनके पौत्र परशुराम को प्राप्त हुआ। परशुराम को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है। त्रेता युग में परशुराम जी से विष्णु के अवतार भगवान श्री राम को यह शारंग धनुष प्राप्त हुआ। श्री राम ने यह धनुष वरुण देव को दिया। महाभारत काल में वरुण देव ने पुन: शारंग को भगवान कृष्ण को दे दिया। धरती छोड़कर निज धाम जाने से पूर्व श्रीकृष्ण ने यह धनुष पुन: वरुण देव को वापस लौटा दिया।
- नंदकम (Nandakam)– यह भगवान विष्णु की तलवार है। हिन्दू धर्मग्रंथों में नंदकम की उत्पत्ति का उल्लेख नही मिलता है। इसे प्रतीक रूप में ज्ञान के प्रकाश के रूप में देखा जाता है। इस तलवार का उल्लेख रामायण काल में मिलता है जिसमें यह तलवार भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के पास थी। इसके अतिरिक्त यह तलवार भगवान विष्णु के विराट स्वरूप में ही देखने को मिलती है।