भगवान सूर्य की कृपा पाने का सबसे आसान उपाय है रविवार का व्रत (Ravivar Vrat) एवं पूजन। इस दिन व्रत करने से जातक को भगवान सूर्य के कृपा प्राप्त होती है। जानिये रविवार का व्रत करने की क्या विधि होती है?, इस व्रत के क्या नियम है?, रविवार व्रत का क्या महत्व है? और साथ ही पढ़ें रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha)…
Ravivar Ka Vrat Karne Ki Vidhi
रविवार (इतवार) के व्रत करने की विधि
रवि यानि भगवान सूर्य का दिन है रविवार। इस दिन का व्रत सभी इच्छओं की पूर्ति करने वाला हैं। व्रत की विधि इस प्रकार है।
- प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- प्रसन्न और शान्तचित्त होकर ईश्वर का ध्यान करें।
- भगवान सूर्य को अर्ध्य दें। सूर्य चालीसा और सूर्याष्टकम का पाठ करें।
- व्रत के दिन रविवार व्रतकथा (Ravivar Vrat Katha) का पाठ करें या श्रवण करें।
- रविवार व्रतकथा (Ravivar Vrat Katha) के बाद रविवार की आरती करें।
- इस दिन एक समय ही भोजन करें ।
- श्रद्धानुसार भोजन या फलाहार ले परंतु ध्यान रखे की भोजन सूर्यास्त से पूर्व ही करें। यदि भोजन का समय निकल जाये तो अगले दिन सूर्योदय के पश्चात अर्ध्य देकर ही भोजन ग्रहण करें।
- व्रत के दिन नमकीन तथा तला हुआ भोजन ना करें।
Significance of Ravivar Vrat
रविवार का व्रत करने का महत्व
रविवार को भगवान सूर्य का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से साधक को भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिनकी जन्मकुण्ड़ली में सूर्य ग्रह की स्थिति अच्छी ना हो उन्हे यह व्रत अवश्य करना चाहिये। ऐसा करने साधक को सूर्य ग्रह की शुभता प्राप्त होती है। साथ ही शनि ग्रह के नकारात्मक प्रभाव भी कम होते है। रविवार का व्रत करने से
- जातक की मान प्रतिष्ठा बढती है
- शत्रुओं का भी नाश होता है।
- सभी प्रकार की पीड़ायें दूर होती हैं।
- नौकरी में उन्नति होती है।
- परिवार में सुख शांति आती है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
- संकल्प शक्ति दृढ़ होती है।
Ravivar Vrat Katha
रविवार व्रत कथा
एक समय की बात है एक नगर में एक वृद्ध महिला रहती थी। वह हर रविवार को सुबह स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर अपने घर को गोबर से लीपने के बाद ही भोजन तैयार करती और उसे भगवान को भोग लगाती उसके पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करती। वह इस प्रकार से रविवार का व्रत करती थी। इस व्रत के प्रभाव से उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण था।
उस वृद्धा के पड़ोस में रहने वाली उसकी पड़ोसन को उससे ईर्ष्या थी और वह उसकी खुशियों से जलती थी। उस पडोसन के मन में विचार आया की यह बुढ़िया मेरी गाय के गोबर से ही अपना घर लीपती है तो क्यों ना मैं अपनी गाय को घर के अंदर ही बांधू और उसने ऐसा ही किया इससे उस बुढ़िया को रविवार के दिन अपना घर लीपने के लिए गाय का गोबर नहीं मिला। इससे दुखी होकर उसने भोजन नहीं बनाया और ना ही भोग लगाया। इस तरह उस दिन उसका निराहार व्रत हुआ और वह भूखी ही सो गई।
उसी रात्रि भगवान ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर भोजन ना बनाने और भोग न लगाने का कारण पूछा- वृद्धा ने उन्हें सारा वृत्तांत बता दिया। तब भगवान ने उसे कहां की मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हे वरदान मे ऐसी गाय देता हूं जिससे तुम्हारी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाएंगी। और मरणोपरांत तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। ऐसा वरदान देकर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए। बुढ़िया जब उठी तो उसने देखा कि उसके घर के आंगन में एक गाय और बछड़ा बंधे हुए हैं। वह बहुत प्रसन्न हो गई और उसको घर के बाहर ही बांध दिया और गाय की सेवा करने लगी।
पडोसन ने जब बुढिया के द्वार पर सुंदर गाय और बछडे को बंधे देखा तो उसके मन की ईर्ष्या और बढ़ गई। फिर उसकी नजर से उस गाय के दिये सोने के गोबर पर पडी तो उसके मन में लालच आ गया। उसने उस गाय का सोने वाला गोबर अपनी गाय के गोबर से बदल दिया। फिर वह हर दिन ऐसा ही करने लगी। उस सीधी सादी बुढ़िया को का आभास भी नहीं था की उसकी गाय सोने का गोबर करती है।
जैसा कि हम लोग जानते हैं की ईश्वर सर्वव्यापी है और सब कुछ देख सकता है। अपनी भक्त को इस तरह ठगा जाता देख कर प्रभु ने एक शाम अपनी माया से तूफान वाला मौसम कर दिया। जोर-जोर से आंधी चलने लगी तब बुढ़िया ने अपनी गाय की रक्षा के लिए उसको को घर के भीतर बांध लिया। और सो गई।
सुबह उठकर उसने देखा कि उसकी गाय ने सोने का गोबर गोबर दिया है तो वह आश्चर्यचकित रह गई। अब तो वह प्रतिदिन अपनी गाय को घर के भीतर ही रखने लगी। उधर जब पड़ोसन ने देखा कि अब वह बुढ़िया गाय को घर के अंदर ही बाँधती है तो उसका मन ईर्ष्या से जल उठा। उसने नगर के राजा के पास जाकर गाय की बहुत प्रशंसा करी और कहा कि ऐसी गाय तो सिर्फ महाराज आपके पास ही होनी चाहिये। उसने यह भी बताया कि वह दिव्य गाय रोज सोने का गोबर देती है उस सोने से राज्य का राजकोष भर जाएगा।
राजा उसकी बातों से प्रभावित हो गया और उसने अपने दूतों को उस बुढिया के घर भेजकर बुढिया के घर से गाय को अपने महल में लाने का आदेश दिया। राजा के दूत बलपूर्वक वृद्धा से उसकी गाय को छीन कर महल ले गए। वृद्धा बहुत दुखी हुई और बार बार विलाप करने लगी। वह वृद्धा रात भर रोती रही और भगवान का ध्यान करके दुखी होती रही। अपनी भक्त की ऐसी अवस्था देखकर भगवान ने उसी रात्रि राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि तुमने जिस बुढिया से गाय को छीना है उसे तुरंत लौटा दो अन्यथा तुम्हारा नाश हो जाएगा।
ऐसा स्वप्न देख कर राजा घबरा गया और अगले दिन सुबह जब उठा तो उसको सारा महल गोबर से भरा हुआ दिखाई दिया। चारों ओर गोबर ही गोबर और उस गोबर की दुर्गंध से सांस लेना भी दूभर हो गया था। राजा समझ गया की यह सब प्रभु की ही माया है। उन्होंने इसलिये ही स्वप्न में दर्शन देकर सावधान किया था। राजा ने तुरंत ही अपने दूतों को आदेश दिया की उस बुढिया को दरबार मे लेकर आये। दूतों ने वैसा ही किया। राजा ने उस बुढ़िया को सम्मान के साथ उसकी गाय और बछड़ा लौटा दिया। और उस दुष्ट पड़ोसन को दंड दिया। ऐसा करने से राजा के महल से गंदगी दूर हो गई।
उसी दिन से राजा ने भी रविवार का व्रत करना प्रारम्भ कर दिया और नगर मे भी व्रत के महात्तम का प्रचार किया। इससे उस नगर के लोग भी इस व्रत को करने लगे। इससे उनके सभी कष्ट और पीडायें दूर हो गये। और उस नगर पर कोई प्राकृतिक आपदा भी नही आती थी। सारी प्रजा सुख से जीने लगी।
Ravivar Ki Aarti
रविवार की आरती
कहँ लागि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकी जोत विराजे। टेक।।
सात समुद्र जाके चरणनि बसें, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम।
भार अठारह रामा बलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेद्य धरे हो राम।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रह्मा वेद पढ़े हो राम।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम।
हिम मंदार जाको पवन झकोरें, कहा भयो सिर चँवर ढुरे हो राम।
लख चौरासी बन्ध छुड़ाये, केवल हरि यश नामदेव गाये हो राम॥