आचरण ज्ञान (Conduct knowledge)

शयन – १. सदा पूर्व या दक्षिण की तरफ ही सिर करके सोना चाहिए।
पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से आयु क्षीण होती है तथा शरीर मे
रोग उत्पन्न होते हैं।
२. बांस या पलाश की लकडी पर कभी नहीं सोना चहिये ।।

मल-मूत्र त्याग – मल त्याग के समय जोर-जोर से सांस नहीं लेनी चाहिए।

शुद्धि – सामने देवताओं का और दायें पितरों का निवास रहता है। अत: मुख
नीचे करके कुल्ले को या अपनी बायीं ओर ही फेंकना अथवा थूकना चाहिए।

दन्त-धावन – पलाश (छौला) की लकड़ी से दातुन कभी नहीं करना चाहिये।

तेल – सिर पर लगाने से हथेली पर बचा तेल शरीर के अन्य अंगों पर नहीं
लगाना चाहिए । अतः अन्य अंगों में पहले बाद में सिर पर तेल लगाना
चाहिए।

स्नान – स्नान किये बिना जो पुण्य कर्म किया जाता है। वह निष्फल होता है,
उसे राक्षस ग्रहण कर लेते हैं।

वस्त्र – अधिक लाल, रंग-बिरंगे, नीले और काले रंग के वस्त्र धारण करना
उत्तम नहीं हैं।

भोजन – १. सूखे पैर और अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये ।
२. फूटे बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिये ।

अन्न – अवहेलना, अनादर तथा दोष पूर्वक मिला हुआ अन्न नहीं खाना चाहिये।

अभक्ष्य – ताम्बे के पात्र में दूध, झूठे भोजन में घी डालकर खाना और नमक के
साथ दूध पीना अभक्ष्य और पाप कारक है।

शारीरिक चेष्टायें – १. दाँतों को परस्पर रगड़ना नहीं चाहिये।
२. अकारण थूकना नहीं चाएिये ।।

स्पर्शास्पर्श – बिना कारण अपनी इन्द्रियों को स्पर्श, गुप्त रोमों का भी स्पर्श
नहीं करना चाहिये।

शुद्धि – स्त्री रजो धर्म से और नदी वेग (प्रवाह) से शुद्ध होती है।

सूतक – आत्महत्या करने वाले का सूतक (मरणाशौच) नहीं लगता।