Rigvedoktam Devi Suktam: नियमित ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् के पाठ से होगा हर समस्या का समाधान

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ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् (Rigvedoktam Devi Suktam) दुर्गा सप्तशती का ही भाग है। देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) के सभी तेरह अध्यायों का पाठ पूर्ण होने पर उपसंहारः (Upasamhara) में पहले नवार्ण जप करके फिर ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् (Rigvedoktam Devi Suktam) का पाठ किये जाने का विधान है। इसका नियमित पाठ करने से साधक के जीवन की सभी समास्याओं का निवारण स्वत: ही हो जाता है। पढ़ियें ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम्…

Rigvedoktam Devi Suktam

॥ ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् ॥

॥ विनियोगः ॥

ॐ अहमित्यष्टर्चस्य सूक्तस्य वागाम्भृणी ऋषिः, सच्चित्सुखात्मकः सर्वगतः परमात्मा देवता,द्वितीयाया ॠचो जगती, शिष्टानां त्रिष्टुप् छन्दः,देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः।

॥ ध्यानम् ॥

ॐ सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्‍चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशरांश्‍च दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्‍‌नोल्लसत्कुण्डला॥

॥ देवीसूक्तम् ॥

ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्‍चराम्यहमादित्यैरुत विश्‍वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्‍विनोभा॥1॥

अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते॥2॥

अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां भा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्य्यावेशयन्तीम्॥3॥

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम्।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि॥4॥

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम्॥5॥

अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश॥6॥

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्‍वो-तामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि॥7॥

अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्‍वा।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव॥8॥

॥ इति ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् समाप्तं ॥

नोट: ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् (Rigvedoktam Devi Suktam) के बाद तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम् का पाठ करें।