श्री नारायण हृदयम् स्तोत्रम् (Narayana Hrudaya Stotram) एक सिद्ध और गुप्त स्तोत्र है। इसके विषय में अधिक लोग नही जानते। इसका पाठ श्री लक्ष्मी हृदयम् स्तोत्रम् (Lakshmi Hrudayam Stotram) के साथ किया जाता है। जानियें श्री नारायण हृदयम् स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें? और इसका क्या महत्व (लाभ) है? पढ़ियें श्री नारायण हृदयम् स्तोत्रम्…
How And When to Recite Shri Narayana Hrudaya Stotram?
कब और कैसे करें श्री नारायण हृदय स्तोत्रम्?
श्री नारायण हृदयम् स्तोत्रम् (Narayana Hrudaya Stotram) एक दिव्य और सच्चा स्तोत्र माना जाता है। यह बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ श्री लक्ष्मी हृदयम् स्तोत्रम् (Lakshmi Hrudayam Stotram) के साथ किया जाता है। जो कि बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है। यह दोनों बहुत ही अनमोल स्तोत्र है।
श्री नारायण हृदय स्तोत्रम् (Narayana Hrudaya Stotram) के अंतिम भाग में इस बात का उल्लेख आता है कि पहले नारायण हृदयम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है फिर उसके पश्चात् श्री लक्ष्मी हृदयम स्तोत्रम् (Lakshmi Hrudayam Stotram) का पाठ किया जाता है। यह दोनो स्तोत्रम् एक साथ पढ़े जाते है। इन्हे पृथक मानकर अलग से नहीं पढ़ा जाना चाहिए। इन दोनो का एक साथ पाठ किया जाना इस तथ्य को बल देता है कि भगवान नारायण और देवी लक्ष्मी वास्तव में एक ही हैं। हालाँकि दो अलग-अलग देवताओं के रूप में इनकी बात की जाती है।
- दोनों स्तोत्रों का पाठ प्रात:काल या रात्रि के समय कभी भी किया जा सकता है। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद पूजा स्थान पर बैठकर लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा या चित्र के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें।
- हल्दी-रोली-चावल से तिलक करें। पुष्प और सुगन्ध अर्पित करें। फल और भोग निवेदन करें।
- फिर नारायण हृदयम् स्तोत्रम् (Narayana Hrudaya Stotram) का पाठ करें। फिर उसके बाद श्री लक्ष्मी हृदयम् स्तोत्रम का पाठ करें। श्री लक्ष्मी हृदयम् स्तोत्रम (Lakshmi Hrudayam Stotram) के बाद फिर से नारायण हृदयम् स्तोत्रम् का पाठ करें।
- विधि अनुसार पाठ करने के बाद अपनी गलतियों के लिये क्षमा याचना करें। और भगवान नारायण से अपना मनोरथ कहें।
- इस स्तोत्र के पाठ को गुप्त रखें। इसकी चर्चा किसी से ना करें। यह एक गुप्त स्तोत्र है।
नोट: आश्विन मास में, शुक्लपक्ष में, पूर्णिमा पर, धन तेरस और दीपावली पर इन दोनों स्तोत्रम् का विधि अनुसार पाठ करने से इसका फल कई गुणा प्राप्त होता है। उस पर स्वर्ण (धन) और सुखों की वर्षा होती है।
Benefits Of Narayana Hrudayam Stotram
नारायण हृदय स्तोत्रम् के लाभ
विधि अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को देवी लक्ष्मी और भगवान नारायण दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह बहुत ही दुर्लभ और गुप्त स्तोत्र है। इसका प्रभाव बहुत ही चमत्कारिक है। इस स्तोत्र का पाठ करने से
- धन – धान्य की प्राप्ति होती है।
- समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
- दुख- दरिद्रता का नाश होता है।
- निर्धन से निर्धन मनुष्य भी धनवान हो जाता है।
- उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। वंश की वृद्धि होती है।
- राजाओं के समान वैभव प्राप्त होता है।
- वाणी की सत्यता प्राप्त होती है।
- यश और बल में वृद्धि होती है।
- कार्य क्षेत्र में निरंतर प्रगति होती है।
- हर प्रकार के भय से जातक मुक्त हो जाता है।
- सभी आदि-व्याधियों से रक्षा होती है।
- सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- जीवन में सुख शांति आती है।
- साधक इस संसार के सभी सुखों को भोगकर मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त होता है।
Shri Narayana Hrudaya Stotram Lyrics
श्री नारायण हृदयम् स्तोत्रम्
॥ श्रीयै नमः ॥
॥ श्रीमते नारायणाय नमः ॥
॥ अथर्वणरहस्ये उत्तर खण्डे श्रीनारायण हृदयम् ॥
॥ ॐ तत्सत् ॥
अथ स्तोत्रम् ।
हरिः ॐ ।
अस्य श्रीनारायणहृदयस्तोत्रमहामन्त्रस्य भार्गव ऋषिः, (ब्रह्मा ऋषिः)
अनुष्टुप्छन्दः, लक्ष्मीनारायणो देवता, नारायणप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
॥ करन्यासः ॥
नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,
नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः,
नारायणः परो देव इति मध्यमाभ्यां नमः,
नारायणः परं धामेति अनामिकाभ्यां नमः,
नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः,
विश्वं नारायण इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
॥ अङ्गन्यासः ॥
नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः,
नारायणः परं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा,
नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट्,
नारायणः परं धामेति कवचाय हुम्,
नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट्,
विश्वं नारायण इति अस्त्राय फट्,
भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
उद्यदादित्यसङ्काशं पीतवासं चतुर्भुजम् ।
शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मीपतिं हरिम् ॥ १॥
त्रैलोक्याधारचक्रं तदुपरि कमठं तत्र चानन्तभोगी
तन्मध्ये भूमिपद्माङ्कुशशिखरदळं कर्णिकाभूतमेरुम् ।
तत्रत्यं शान्तमूर्तिं मणिमयमकुटं कुण्डलोद्भासिताङ्गं
लक्ष्मीनारायणाख्यं सरसिजनयनं सन्ततं चिन्तयामः ॥ २॥
अस्य श्रीनारायणाहृदयस्तोत्रमहामन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, नारायणो देवता, नारायणप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ नारायणः परं ज्योतिरात्मा नारायणः परः ।
नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
नारायणः परो देवो धाता नारायणः परः ।
नारायणः परो धाता नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ४॥
नारायणः परं धाम ध्यानं नारायणः परः ।
नारायण परो धर्मो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
नारायणः परो देवो विद्या नारायणः परः ।
विश्वं नारायणः साक्षान् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
नारायणाद् विधिर्जातो जातो नारायणाद्भवः ।
जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ७॥
रविर्नारायणस्तेजः चन्द्रो नारायणो महः ।
वह्निर्नारायणः साक्षात् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
नारायण उपास्यः स्याद् गुरुर्नारायणः परः ।
नारायणः परो बोधो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ९॥
नारायणः फलं मुख्यं सिद्धिर्नारायणः सुखम् ।
हरिर्नारायणः शुद्धिर्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १०॥
निगमावेदितानन्तकल्याणगुणवारिधे ।
नारायण नमस्तेऽस्तु नरकार्णवतारक ॥ ११॥
जन्ममृत्युजराव्याधिपारतन्त्र्यादिभिः सदा ।
दोषैरस्पृष्टरूपाय नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १२॥
वेदशास्त्रार्थविज्ञानसाध्यभक्त्येकगोचर ।
नारायण नमस्तेऽस्तु मामुद्धर भवार्णवात् ॥ १३॥
नित्यानन्द महोदार परात्पर जगत्पते ।
नारायण नमस्तेऽस्तु मोक्षसाम्राज्यदायिने ॥ १४॥
आब्रह्मस्थम्बपर्यन्तमखिलात्ममहाश्रय ।
सर्वभूतात्मभूतात्मन् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १५॥
पालिताशेषलोकाय पुण्यश्रवणकीर्तन ।
नारायण नमस्तेऽस्तु प्रलयोदकशायिने ॥ १६॥
निरस्तसर्वदोषाय भक्त्यादिगुणदायिने ।
नारायण नमस्तेऽस्तु त्वां विना न हि मे गतिः ॥ १७॥
धर्मार्थकाममोक्षाख्यपुरुषार्थप्रदायिने ।
नारायण नमस्तेऽस्तु पुनस्तेऽस्तु नमो नमः ॥ १८॥
अथ प्रार्थना ।
नारायण त्वमेवासि दहराख्ये हृदि स्थितः ।
प्रेरिता प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरितमानसः ॥ १९॥
त्वदाज्ञां शिरसा कृत्वा भजामि जनपावनम् ।
नानोपासनमार्गाणां भवकृद् भावबोधकः ॥ २०॥
भावार्थकृद् भवातीतो भव सौख्यप्रदो मम ।
त्वन्मायामोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितम् ॥ २१॥
त्वदधिष्ठानमात्रेण सा वै सर्वार्थकारिणी ।
त्वमेव तां पुरस्कृत्य मम कामान् समर्थय ॥ २२॥
न मे त्वदन्यस्त्रातास्ति त्वदन्यन्न हि दैवतम् ।
त्वदन्यं न हि जानामि पालकं पुण्यवर्धनम् ॥ २३॥
यावत्सांसारिको भावो मनस्स्थो भावनात्मकः ।
तावत्सिद्धिर्भवेत् साध्या सर्वदा सर्वदा विभो ॥ २४॥
पापिनामहमेकाग्रो दयालूनां त्वमग्रणीः ।
दयनीयो मदन्योऽस्ति तव कोऽत्र जगत्त्रये ॥ २५॥
त्वयाहं नैव सृष्टश्चेत् न स्यात्तव दयालुता ।
आमयो वा न सृष्टश्चेदौषधस्य वृथोदयः ॥ २६॥
पापसङ्गपरिश्रान्तः पापात्मा पापरूपधृक् ।
त्वदन्यः कोऽत्र पापेभ्यः त्रातास्ति जगतीतले ॥ २७॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ २८॥
प्रार्थनादशकं चैव मूलाष्टकमतःपरम् ।
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥ २९॥
नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्टफलप्रदम् ।
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं यदि चैतद्विनाकृतम् ॥ ३०॥
तत्सर्वं निष्फलं प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुध्यति सर्वदा ।
एतत्सङ्कलितं स्तोत्रं सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥ ३१॥
जपेत् सङ्कलितं कृत्वा सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् ।
नारायणस्य हृदयं आदौ जप्त्वा ततःपरम् ॥ ३२॥
लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं जपेन्नारायणं पुनः ।
पुनर्नारायणं जप्त्वा पुनर्लक्ष्मीनुतिं जपेत् ॥ ३३॥
तद्वद्धोमादिकं कुर्यादेतत्सङ्कलितं शुभम् ।
एवं मध्ये द्विवारेण जपेत् सङ्कलितं शुभम् ॥ ३४॥
लक्ष्मीहृदयके स्तोत्रे सर्वमन्यत् प्रकाशितम् ।
सर्वान् कामानवाप्नोति आधिव्याधिभयं हरेत् ॥ ३५॥
गोप्यमेतत् सदा कुर्यात् न सर्वत्र प्रकाशयेत् ।
इति गुह्यतमं शास्त्रं प्रोक्तं ब्रह्मादिभिः पुरा ॥ ३६॥
लक्ष्मीहृदयप्रोक्तेन विधिना साधयेत् सुधीः ।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन साधयेद् गोपयेत् सुधीः ॥ ३७॥
यत्रैतत्पुस्तकं तिष्ठेत् लक्ष्मीनारायणात्मकम् ।
भूतपैशाचवेताळभयं नैव तु सर्वदा ॥ ३८॥
भृगुवारे तथा रात्रौ पूजयेत् पुस्तकद्वयम् ।
सर्वदा सर्वदा स्तुत्यं गोपयेत् साधयेत् सुधीः ।
गोपनात् साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्त्वतः ॥ ३९॥
॥ इत्यथर्वणरहस्ये उत्तरभागे नारायणहृदयस्तोत्रम् ॥