Devi Mahatmyam Chapter 9: देवी महात्म्य के नवम अध्याय में पढ़ें निशुम्भ वध का वर्णन

Goddess durga; Devi durga image; durga saptashati image; Devi Mahatmyam Chapter 9;

देवी महात्म्य के नवम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 9) में निशुम्भ के वध का वर्णन किया गया है। जब शुम्भ के द्वारा भेजें गये अतिपराक्रमी असुर रक्तबीज को माँ अम्बिका ने उसकी सेना के साथ समाप्त कर दिया। तब अत्यंत ही क्षुब्ध होकर शुम्भ ने अपने महापराक्रमी भाई निशुम्भ को माँ अम्बिका से युद्ध के लिये भेजा। इस अध्याय में आप पढ़ेंगे किस प्रकार देवी अम्बिका ने निशुम्भ का संहार किया।

ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही अद्भुत और शक्तिशाली है। इसके पाठ से साधक के जीवन की समस्त समस्याओं का निवारण होता है। माँ दुर्गा के महिमा अपरम्पार है। दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का वर्णन किया गया है जिसमें देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। और राक्षस महिषासुर का वध करके महिषासुरमर्दिनी कहलाई। दुर्गा सप्तशती का पाठ 13 अध्यायों में बाँटा गया है, इसमे 700 श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य और चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है।

Devi Mahatmyam Chapter 9

॥ श्रीदुर्गासप्तशती – नवमोऽध्यायः ॥

॥ ध्यानम् ॥

ॐ बन्धूककाञ्चननिभं रुचिराक्षमालां
पाशाङ्कुशौ च वरदां निजबाहुदण्डैः।
बिभ्राणमिन्दुशकलाभरणं त्रिनेत्र-
मर्धाम्बिकेशमनिशं वपुराश्रयामि॥

“ॐ” राजोवाच॥1॥

विचित्रमिदमाख्यातं भगवन् भवता मम।
देव्याश्‍चरितमाहात्म्यं रक्तबीजवधाश्रितम्॥2॥

भूयश्‍चेच्छाम्यहं श्रोतुं रक्तबीजे निपातिते।
चकार शुम्भो यत्कर्म निशुम्भश्‍चातिकोपनः॥3॥

ऋषिरुवाच॥4॥

चकार कोपमतुलं रक्तबीजे निपातिते।
शुम्भासुरो निशुम्भश्‍च हतेष्वन्येषु चाहवे॥5॥

हन्यमानं महासैन्यं विलोक्यामर्षमुद्वहन्।
अभ्यधावन्निशुम्भोऽथ मुख्ययासुरसेनया॥6॥

तस्याग्रतस्तथा पृष्ठे पार्श्‍वयोश्‍च महासुराः।
संदष्टौष्ठपुटाः क्रुद्धा हन्तुं देवीमुपाययुः॥7॥

आजगाम महावीर्यः शुम्भोऽपि स्वबलैर्वृतः।
निहन्तुं चण्डिकां कोपात्कृत्वा युद्धं तु मातृभिः॥8॥

ततो युद्धमतीवासीद्देव्या शुम्भनिशुम्भयोः।
शरवर्षमतीवोग्रं मेघयोरिव वर्षतोः॥9॥

चिच्छेदास्ताञ्छरांस्ताभ्यां चण्डिका स्वशरोत्करैः।
ताडयामास चाङ्‌गेषु शस्त्रौघैरसुरेश्‍वरौ॥10॥

निशुम्भो निशितं खड्‌गं चर्म चादाय सुप्रभम्।
अताडयन्मूर्ध्नि सिंहं देव्या वाहनमुत्तमम्॥11॥

ताडिते वाहने देवी क्षुरप्रेणासिमुत्तमम्।
निशुम्भस्याशु चिच्छेद चर्म चाप्यष्टचन्द्रकम्॥12॥

छिन्ने चर्मणि खड्‌गे च शक्तिं चिक्षेप सोऽसुरः।
तामप्यस्य द्विधा चक्रे चक्रेणाभिमुखागताम्॥13॥

कोपाध्मातो निशुम्भोऽथ शूलं जग्राह दानवः।
आयातं मुष्टिपातेन देवी तच्चाप्यचूर्णयत्॥14॥

आविध्याथ गदां सोऽपि चिक्षेप चण्डिकां प्रति।
सापि देव्या त्रिशूलेन भिन्ना भस्मत्वमागता॥15॥

ततः परशुहस्तं तमायान्तं दैत्यपुङ्‌गवम्।
आहत्य देवी बाणौघैरपातयत भूतले॥16॥

तस्मिन्निपतिते भूमौ निशुम्भे भीमविक्रमे।
भ्रातर्यतीव संक्रुद्धः प्रययौ हन्तुमम्बिकाम्॥17॥

स रथस्थस्तथात्युच्चैर्गृहीतपरमायुधैः।
भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं बभौ नभः॥18॥

तमायान्तं समालोक्य देवी शङ्‌खमवादयत्।
ज्याशब्दं चापि धनुषश्‍चकारातीव दुःसहम्॥19॥

पूरयामास ककुभो निजघण्टास्वनेन च।
समस्तदैत्यसैन्यानां तेजोवधविधायिना॥20॥

ततः सिंहो महानादैस्त्याजितेभमहामदैः।
पूरयामास गगनं गां तथैव दिशो दश॥21॥

ततः काली समुत्पत्य गगनं क्ष्मामताडयत्।
कराभ्यां तन्निनादेन प्राक्स्वनास्ते तिरोहिताः॥22॥

अट्टाट्टहासमशिवं शिवदूती चकार ह।
तैः शब्दैरसुरास्त्रेसुः शुम्भः कोपं परं ययौ॥23॥

दुरात्मंस्तिष्ठ तिष्ठेति व्याजहाराम्बिका यदा।
तदा जयेत्यभिहितं देवैराकाशसंस्थितैः॥24॥

शुम्भेनागत्य या शक्तिर्मुक्ता ज्वालातिभीषणा।
आयान्ती वह्निकूटाभा सा निरस्ता महोल्कया॥25॥

सिंहनादेन शुम्भस्य व्याप्तं लोकत्रयान्तरम्।
निर्घातनिःस्वनो घोरो जितवानवनीपते॥26॥

शुम्भमुक्ताञ्छरान्‍देवी शुम्भस्तत्प्रहिताञ्छरान्।
चिच्छेद स्वशरैरुग्रैः शतशोऽथ सहस्रशः॥27॥

ततः सा चण्डिका क्रुद्धा शूलेनाभिजघान तम्।
स तदाभिहतो भूमौ मूर्च्छितो निपपात ह॥28॥

ततो निशुम्भः सम्प्राप्य चेतनामात्तकार्मुकः।
आजघान शरैर्देवीं कालीं केसरिणं तथा॥29॥

पुनश्‍च कृत्वा बाहूनामयुतं दनुजेश्‍वरः।
चक्रायुधेन दितिजश्‍छादयामास चण्डिकाम्॥30॥

ततो भगवती क्रुद्धा दुर्गा दुर्गार्तिनाशिनी।
चिच्छेद तानि चक्राणि स्वशरैः सायकांश्‍च तान्॥31॥

ततो निशुम्भो वेगेन गदामादाय चण्डिकाम्।
अभ्यधावत वै हन्तुं दैत्यसेनासमावृतः॥32॥

तस्यापतत एवाशु गदां चिच्छेद चण्डिका।
खड्‌गेन शितधारेण स च शूलं समाददे॥33॥

शूलहस्तं समायान्तं निशुम्भममरार्दनम्।
हृदि विव्याध शूलेन वेगाविद्धेन चण्डिका॥34॥

भिन्नस्य तस्य शूलेन हृदयान्निःसृतोऽपरः।
महाबलो महावीर्यस्तिष्ठेति पुरुषो वदन्॥35॥

तस्य निष्क्रामतो देवी प्रहस्य स्वनवत्ततः।
शिरश्चिच्छेद खड्‌‍गेन ततोऽसावपतद्भुवि॥36॥

ततः सिंहश्‍चखादोग्रं दंष्ट्राक्षुण्णशिरोधरान्।
असुरांस्तांस्तथा काली शिवदूती तथापरान्॥37॥

कौमारीशक्तिनिर्भिन्नाः केचिन्नेशुर्महासुराः।
ब्रह्माणीमन्त्रपूतेन तोयेनान्ये निराकृताः॥38॥

माहेश्‍वरीत्रिशूलेन भिन्नाः पेतुस्तथापरे।
वाराहीतुण्डघातेन केचिच्चूर्णीकृता भुवि॥39॥

खण्डं खण्डं च चक्रेण वैष्णव्या दानवाः कृताः।
वज्रेण चैन्द्रीहस्ताग्रविमुक्तेन तथापरे॥40॥

केचिद्विनेशुरसुराः केचिन्नष्टा महाहवात्।
भक्षिताश्‍चापरे कालीशिवदूतीमृगाधिपैः॥ॐ॥41॥

॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये निशुम्भवधो नाम नवमोऽध्यायः॥९॥

उवाच २, श्‍लोकाः ३९, एवम् ४१, एवमादितः॥५४३ ॥

नोट : देवीमाहात्म्ये के नवम अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 9) के बाद देवी माहात्म्य के दशम अध्याय का पाठ किया जाता है।

दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) के पाठ का क्रम इस प्रकार से है –