देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) के सभी तेरह अध्यायों का पाठ पूर्ण होने पर उपसंहारः (Upasamhara) करें। इसमें पहले नवार्ण जप करके फिर ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् का पाठ किये जाने का विधान है। नवार्ण-विधि में सभी कार्य पहले की ही तरह से होंगे। जानियें नवार्ण जप विधि…
Upasamhara
॥ उपसंहारः ॥
॥ विनियोगः ॥
श्रीगणपतिर्जयति।ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,
गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
॥ ऋष्यादिन्यासः ॥
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः, शिरसि।गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः, मुखे।
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि।
ऐं बीजाय नमः, गुह्ये। ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः।क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”- इति मूलेन करौ संशोध्य –
॥ करन्यासः ॥
ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः।ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
॥ हृदयादिन्यासः ॥
ॐ ऐं हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।ॐ क्लीं शिखायै वषट्।
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्।ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्।
॥ अक्षरन्यासः ॥
ॐ ऐं नमः, शिखायाम्।ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे।
ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे।ॐ चां नमः, दक्षिणकर्णे।
ॐ मुं नमः, वामकर्णे।ॐ डां नमः, दक्षिणनासापुटे।
ॐ यैं नमः, वामनासापुटे।ॐ विं नमः, मुखे। ॐ च्चें नमः, गुह्ये।
“एवं विन्यस्याष्टवारं मूलेन व्यापकं कुर्यात्”
॥ दिङ्न्यासः ॥
ॐ ऐं प्राच्यै नमः।ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः।ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः।ॐ क्लीं वायव्यै नमः।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः।ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः।
॥ ध्यानम् ॥
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥1॥
अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥2॥
घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥3॥
इस प्रकार न्यास और ध्यान करके मानसिक उपचार से देवी की पूजा करें। फिर 108 या 1008 बार नवार्णमन्त्र का जप करें। जप आरम्भ करने से पूर्व इस मन्त्र “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” से माला की पूजा करके इस प्रकार प्रार्थना करें-
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिंदेहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिंपरिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
जप शुरू करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करें फिर जप आरम्भ करें। जप पूर्ण करने के उपरांत उसे भगवती को समर्पित करते हुए कहे-
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि॥
तत्पश्चात् फिर नीचे लिखे अनुसार न्यास करें-
॥ करन्यासः ॥
ॐ ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।ॐ चं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ डिं मध्यमाभ्यां नमः।ॐ कां अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ यैं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐ ह्रीं चण्डिकायै करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
॥ हृदयादिन्यासः ॥
ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥ हृदयाय नमः।
ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥ शिरसे स्वाहा।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे।
भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि॥ शिखायै वषट्।
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते।
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥ कवचाय हुम्।
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके।
करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥ नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ अस्त्राय फट्।
॥ ध्यानम् ॥
ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
नोट:- उपसंहारः (Upasamhara) के बाद ऋग्वेदोक्तं देवीसूक्तम् का पाठ करें।