ब्रह्म संहिता के अनुसार गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) भगवान नारायण के द्वारा प्रकाशित किया गया था। उन्होने यह कवच देवराज इन्द्र आदि देवताओं को सुनाया था। फिर नारद जी के पूछने पर परमपिता ब्रह्मा ने देवर्षि नारद को यह कवच सुनाया था। इस कवच को धारण करने वाला हर स्थान पर विजय प्राप्त करता है। जानियें कब और कैसे करें गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) का पाठ? साथ ही पढ़ियें इस कवच स्तोत्र के लाभ…
Gopal Akshay Kavach
गोपाल अक्षय कवच
गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस स्तोत्र का उल्लेख ब्रह्म संहिता में कहा गया है। देवर्षि नारद जी ने परम पिता ब्रह्मा से इस कवच के विषय में पूछा तो उन्होने नारद जी को इस परम दुर्लभ कवच स्तोत्र के विषय में बताया। भगवान नारायण ने स्वयं यह गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) देवराज इन्द्र आदि देवताओं को सुनाया था। गोपाल अक्षय कवचम का नियमित पाठ करने से साधक को हर स्थान पर विजय प्राप्त होती है, धन लाभ के अवसर प्रस्तुत होते है, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र की प्राप्ति होती है, रोग समाप्त होते है और जातक सद्गति को प्राप्त करता है।
When & How To Recite Gopal Akshay Kavach?
कब और कैसे करें गोपाल अक्षय कवचम का पाठ?
प्रतिदिन प्रात:काल नियमित रूप से गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) का पाठ करना चाहिये। इस कवच पाठ को करने से एक अदृश्य सुरक्षा कवच साधक को खतरों से सुरक्षित करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने की विधि इस प्रकार से है:-
- प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर बैठकर भगवान कृष्ण की ध्यान करें और फिर उनकी गोपाल रूप की मूर्ति या चित्र की पूजा करें।
- धूप – दीप जलाकर भगवान को माखन-मिश्री का भोग लगायें।
- पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ एकाग्रचित्त होकर गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) का शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें।
- पाठ पूर्ण होने के बाद भगवान की आरती करें। फिर उनसे अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगें और अपना मनोरथ निवेदन करें। भगवान श्री कृष्ण आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे ऐसा मन में विश्वास रखें।
Benefits of Reciting Gopal Akshay Kavach
गोपाल अक्षय कवच पाठ के लाभ
गोपाल अक्षय कवच (Gopal Akshay Kavach) एक बहुत ही दुर्लभ और शक्तिशाली कवच स्तोत्र है। इस कवच स्तोत्र से सुरक्षित मनुष्य
- सभी प्रकार के खतरों से सुरक्षित होता है। ग्रहों की बुरी स्थिति और उनके दुष्प्रभावों से छुटकारा मिलता है।
- नकारत्मक शक्तियों का प्रभाव जैसे नजर लगना, जादू-टोना इत्यादि समाप्त हो जाता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मन विचलित नही होता।
- विचारों में दृढ़ता आती है।
- शत्रुओं द्वारा उत्पन्न की गई परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
- शत्रु का भय समाप्त होता है।
- विरोधियों पर विजय प्राप्त होती है। हर स्थान पर विजय मिलती है।
- दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।
- धन – सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
- संतान हीन को संतान प्राप्त होती है और पुत्र की कामना रखने वाले को पुत्र की प्राप्ति होती है।
- साधक सभी सिद्धियों से संपन्न होता है।
- रोग और दुखों का नाश होता है।
- साधक जीवन के सुखों को भोगकर अंत समय में विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
नोट: खुशहाल दाम्पत्य जीवन चाहने वालों को, पुत्र की इच्छा रखने वालो को और जो लोग कष्टों-परेशानियों से घिरे हो उन्हे विशेषकर इस गोपाल अक्षय कवचम का पाठ अवश्य करना चाहिए।
गोपाल अक्षय कवच के साथ-साथ संतान गोपाल यंत्र की पूजा करने से इसका लाभ कई गुणा बढ़ जाता है और इसका फल भी शीघ्र प्राप्त होता है।
Gopal Akshya Kavacham Lyrics
गोपालाक्षय कवचम्
श्री गणेशाय नमः ।
श्रीनारद उवाच ।
इन्द्राद्यमरवर्गेषु ब्रह्मन्यत्परमाऽद्भुतम् ।
अक्षयं कवचं नाम कथयस्व मम प्रभो ॥
यद्धृत्वाऽऽकर्ण्य वीरस्तु त्रैलोक्य विजयी भवेत् ।
ब्रह्मोवाच ।
शृणु पुत्र मुनिश्रेष्ठ कवचं परमाद्भुतम् ।
इन्द्रादिदेववृन्दैश्च नारायणमुखाच्छ्रतम् ॥
त्रैलोक्यविजयस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ।
ऋषिश्छन्दो देवता च सदा नारायणः प्रभुः ॥
ॐ अस्य श्री त्रैलोक्यविजयाक्षय कवचस्य प्रजापति ऋषि: ।
श्रीनारायणः परमात्मा देवता । धर्मार्थ काम मोक्षार्थे जपे विनियोगः ॥
पादौ रक्षतु गोविन्दो जङ्घे पातु जगत्प्रभुः ।
ऊरू द्वौ केशवः पातु कटी दामोदरस्ततः ।
वदनं श्रीहरिः पातु नाडीदेशं च मेऽच्युतः ॥
वामपार्श्वं तथा विष्णुर्दक्षिणं च सुदर्शनः ।
बाहुमूले वासुदेवो हृदयं च जनार्दनः ॥
कण्ठं पातु वराहश्च कृष्णश्च मुखमण्डलम् ।
कर्णौ मे माधवः पातु हृषीकेशश्च नासिके ॥
नेत्रे नारायणः पातु ललाटं गरुडध्वजः ।
कपोलं केशवः पातु चक्रपाणिः शिरस्तथा ॥
प्रभाते माधवः पातु मध्याह्ने मधुसूदनः ।
दिनान्ते दैत्यनाशश्च रात्रौ रक्षतु चन्द्रमाः ॥
पूर्वस्यां पुण्डरीकाक्षो वायव्यां च जनार्दनः ।
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम् ॥
तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं न वक्तव्यं तु कस्यचित् ।
कवचं धारयेद्यस्तु साधको दक्षिणे भुजे ॥
देवा मनुष्या गन्धर्वा यज्ञास्तस्य न संशयः ।
योषिद्वामभुजे चैव पुरुषो दक्षिणे भुजे ॥
निभृयात्कवचं पुण्यं सर्वसिद्धियुतो भवेत् ।
कण्ठे यो धारयेदेतत् कवचं मत्स्वरूपिणम् ॥
युद्धे जयमवाप्नोति द्यूते वादे च साधकः ।
सर्वथा जयमाप्नोति निश्चितं जन्मजन्मनि ॥
अपुत्रो लभते पुत्रं रोगनाशस्तथा भवेत् ।
सर्वतापप्रमुक्तश्च विष्णुलोकं स गच्छति ॥
॥ इति ब्रह्मसंहितोक्तं श्री गोपालाक्षय कवचम् सम्पूर्णम् ॥
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