ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rinharta Ganesh Stotra) का नियमित पाठ करने से साधक को शीघ्र ऋण से मुक्ति मिलती है और दरिद्रता का नाश होता है। अपार धन-सम्पत्ति और वैभव की प्राप्ति होती है। यह भगवान गणेश का एक बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है। इस स्तोत्र के विषय में भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताया था। पढ़ियें भगवान गणेश का चमत्कारिक ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rin Harta Ganesha Stotra) और उसके लाभ…
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Whe and How to Recite Rin Harta Ganesha Stotra?
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rinharta Ganesh Stotra) का पाठ सुबह या शाम कभी भी किया जा सकता है। शरीर और मन की शुद्धता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने मुनुष्य का कल्याण होता है।
- प्रात: काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें। और भगवान गणेश का ध्यान करें। भगवान गणेश को सिंदूर, पुष्प, दूर्वा और सुगन्ध अर्पित करें।
- धूप-दीप जलाकर पूर्ण श्रद्धा-भक्ति और शुद्ध उच्चारण के साथ ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rinharta Ganesh Stotra) का पाठ करें।
- पाठ समाप्त होने के बाद भगवान गणेश से अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगें और फिर उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें।
विशेष: ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rinharta Ganesh Stotra) का प्रतिदिन नियमित रूप से पूरे एक वर्ष तक श्रद्धा-भक्ति के साथ दिन में एक बार पाठ करने से मनुष्य को शीघ्र अति शीघ्र अपने कर्ज से छुटकारा मिल जाता है। और उसकी दरिद्रता का नाशा होता है।
Benefits Of Reciting Rinharta Ganesh Stotra?
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र पाठ के लाभ
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र (Rinharta Ganesh Stotra) विघ्नहर्ता भगवान गणेश का एक चमत्कारिक स्तोत्र है। इसका नियमित रूप से पाठ करने से
- साधक को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
- गणेश जी के आशीर्वाद से साधक को शीघ्रता से अपने ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
- दरिद्रता का नाश होता है।
- अपार धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है।
- मनोरथ सफल होता है।
- कार्य सिद्धि सफलता पूर्वक बिना किसी विघ्न-बाधा की पूर्ण होते है।
- जीवन की परेशानियाँ दूर होती है।
- दुख और कष्टों का नाश होता है।
Rinharta Ganesh Stotra Lyrics
ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र
॥ ऋणहर्ता श्री गणेश स्तोत्रम् ॥
कैलाशपर्वते रम्ये शम्भुं चन्द्रार्धशेखरम्।
षडाम्नायसमायुक्तं पप्रच्छ नगकन्यका॥
॥ पार्वत्युवाच ॥
देवश परमेशान सर्वशास्त्रार्थपारग।
उपायमृणनाशस्य कृपया वद साम्प्रतम्॥
॥ शिव उवाच ॥
सम्यक् पृष्टं त्वया भद्रे लोकानां हिकाम्यया।
तत्सर्वं सम्प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय॥
॥ विनियोग ॥
ॐ अस्य श्रीऋणहरणकर्तृगणपतिस्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः
अनुष्टुप् छन्दः श्रीऋणहरणकर्तृगणपतिर्देवता ग्लौं बीजम्
गः शक्तिः गों कीलकम्मम सकलऋणनाशने जपे विनियोगः।
॥ ऋष्यादिन्यास ॥
ॐ सदाशिवऋषये नमः शिरसि।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
ॐ श्रीऋणहर्तृगणेश देवतायै नमः हृदि।
ॐ ग्लौं बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ गः शक्तये नमः पादयोः।
ॐ गों कीलकाय नमः सर्वांगे।
॥ करन्यास ॥
ॐ गणेश अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ऋणं छिन्धि तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ वरेण्यम् मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ हुं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ नमः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ फट् करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
॥ हृदयादिन्यास ॥
ॐ गणेश हृदयाय नमः।
ॐ ऋणं छिन्धि शिरसे स्वाहा।
ॐ वरेण्यम् शिखायै वषट्।
ॐ हुं कवचाय हुम्।
ॐ नमः नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ फट् अस्त्राय फट्।
॥ ध्यान ॥
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशंलम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्।
ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानंसिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्॥
॥ स्तोत्र पाठ ॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
त्रिपुरस्य वधात्पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छविसिद्धये।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
शशिना कान्तिसिद्ध्यर्थं पूजितो गणनायकः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजितः।
सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥
इदं त्वृणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनम्।
एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः॥
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत्।
फडन्तोऽयं महामन्त्रः सार्धपञ्चदशाक्षरः॥
अस्यैवायुतसंख्याभिः पुरश्चरणमीरितम।
सहस्रावर्तनात् सद्यो वाञ्छितं लभते फलम्॥
भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः॥
॥ इति श्रीकृष्णयामलतन्त्रागत-उमामहेश्वरसंवादे ऋणहर्ता श्री गणेश स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
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