काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।
नहिं जप जोग न ध्यान करो ।
तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं ।
ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर ।
कारण कौन विलम्बु लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत ।
राखि लेहु यम फांस बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक ।
घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो ।
घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण ।
देविहिं टारि पाताल पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त ।
लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब ।
जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक ।
टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर ।
भूलि गई जिय की चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु ।
रोषित देखि के जात डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार ।
पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले ।
अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी ।
भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो ।
मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश ।
सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै ।
सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं ।
जान परि बड़ी वार लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में ।
कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत ।
जात महा दुःख बेगि नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन ।
का वरणों वह सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत ।
कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा ।
बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज ।
सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन ।
गैर बिना वर बेनु बजाई ।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित ।
हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं ।
जान परि बड़ी बार लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर ।
लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में ।
भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो ।
बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर ।
धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके ।
जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल ।
मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं ।
अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन ।
जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना ।
मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै ।
छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा अब ।
का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत ।
लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले ।
भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में होहु सहाई ।।