श्री कालभैरवाष्टकं (Sri Kalabhairava Ashtakam) एक बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है। इसके वाचन से हमारे शरीर का आज्ञा चक्र जागृत होता है जिससे जातक को वर्तमान समय की सम्पूर्ण जागरूकता प्राप्त होती है। काल भैरव अष्टकम के नित्य पाठ से साधक को अप्रत्याशित लाभ प्राप्त होते है। श्री काल भैरवाष्टकम (kaal bhairav ashtakam) के साथ पढ़िये इसका महत्व और लाभ…
Significance Of Kalabhairava Ashtakam
श्री काल भैरवाष्टकम का महत्व
शास्त्रों मे भगवान शिव के कई रूप और अवतारों का वर्णन मिलता है। भगवान कालभैरव भगवान शिव का ही रौद्र रूप हैं। आदि शंकराचार्य ने कालभैरव अष्टकम (Kalabhairava Ashtakam) में भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप का जो वर्णन किया है उसमें उनका रंग काला, उनकी तीन आंखें और चार हाथ होना बताया है। उन्होने गले में खोपड़ी और सांपों की माला धारण की हुई है और उनके चार हाथों में संहारक हथियार हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्री काल भैरवाष्टकम में उन्होने भगवान काल भैरव की स्तुति की है। उन्हे काशी का भगवान बताया है। परम आनन्द की प्राप्ति के लिये भगवान कालभैरव के चरणों में दैवी शक्तियाँ भी नमन करती हैं।
Benefits Of Reading Kaal Bhairava Ashtakam
श्री कालभैरवाष्टकं के लाभ
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्री काल भैरवाष्टकम (Sri Kaal Bhairava Ashtakam) एक बहुत ही दुर्लभ और प्रभावशाली स्तोत्र है। जो जातक प्रतिदिन इसका पाठ नहीं कर सकते उन्हें कालाष्टमी (प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि) के दिन श्री कालभैरवाष्टकं का पाठ अवश्य करना चाहिये। इससे उन्हे विशेष लाभ होता है। इस स्तोत्र का पाठ शरीर में उपस्थित आज्ञा चक्र को जागृत करता है। इसके पाठ से
- साधक को धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
- साधक अपने किये हुए पाप और दुष्कर्मों से मुक्त होकर निर्मल हो जाता है।
- जन्मकुण्ड़ली के ग्रहों की स्थिति के कारण उत्पन्न शनि, राहु और केतु के दोषों का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।
- समस्त दुख और विपत्ति दूर होती है। किसी के द्वारा किये गये जादू-टोने और तंत्र प्रयोग का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
- जीवन में अप्रत्याशित लाभ होते है और अकल्पनीय सफलता प्राप्त होती है।
- साधक को सभी प्रकार की खुशियाँ प्राप्त होती है। सुख-शांति – समृद्धि में वृद्धि होती है।
- ज्ञान एवं अद्भुत गुणों में बढ़ोत्तरी होती है।
- दु:ख, मोह, दरिद्रता, लोभ, क्रोध और कष्टों का नाश होता है।
- यश और बल में वृद्धि होती है। अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और साधक दीर्धायु होता है।
- मृत्यु के उपरांत ऐसे जातक भगवान कालभैरव के चरणों स्थान पाते हैं।
Kalabhairava Ashtakam Lyrics
श्री कालभैरवाष्टकं
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थिरम् समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षदं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति ॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
॥ इति श्री कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥