दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पाठ के क्रम में सर्वप्रथम देवी कवच (Devi Kavach), फिर अर्गला स्तोत्रम् (Argala Stotram), उसके बाद कीलकम् स्तोत्र (keelakam stotram) का पाठ किया जाता है। कीलकम् स्तोत्र के बाद वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् (Vedoktam Ratri Suktam) का पाठ किया जाता है। इसके बाद तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् पाठ किया जाता है।
Vedoktam Ratri Suktam
वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम्
दुर्गा सप्तशती में दो प्रकार के रात्रि सूक्त है- वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् (Vedoktam Ratri Suktam) और तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम्। रात्रि देवता के प्रतिपादक सूक्त को रात्रि सूक्त कहा जाता है। ऋग्वेद की आठ ऋचाएँ वेदोक्तम् रात्रिसूक्त है।
॥ अथ वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥
ॐ रात्रीत्याद्यष्टर्चस्य सूक्तस्यकुशिकः सौभरो रात्रिर्वा भारद्वाजो ऋषिः, रात्रिर्देवता,गायत्री छन्दः, देवीमाहात्म्यपाठे विनियोगः।
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभिः।
विश्वा अधि श्रियोऽधित॥1॥
ओर्वप्रा अमर्त्यानिवतो देव्युद्वतः।
ज्योतिषा बाधते तमः॥2॥
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती।
अपेदु हासते तमः॥3॥
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि।
वृक्षे न वसतिं वयः॥4॥
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः।
नि श्येनासश्चिदर्थिनः॥5॥
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये।
अथा नः सुतरा भव॥6॥
उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित।
उष ऋणेव यातय॥7॥
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिवः।
रात्रि स्तोमं न जिग्युषे॥8॥
॥ इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसूक्तं समाप्तं। ॥
नोट – वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् के पश्चात् तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् का पाठ किया जाता है।