तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम (Tantroktam Ratri Suktam) का पाठ कब करें? पूरी जानकारी यहाँ पायें…

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दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पाठ का क्रम इस प्रकार से है पहले देवी कवच (Devi Kavach), फिर अर्गला स्तोत्रम् (Argala Stotram), उसके बाद कीलकम् स्तोत्र (keelakam stotram), फिर वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् (Vedoktam Ratri Suktam) और इसके पश्चात् तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् (Tantroktam Ratri Suktam) पाठ किया जाता है। तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् के पाठ के बाद देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। यह समस्त स्तोत्र चण्डी पाठ आरम्भ होने से पूर्व पढ़ें जाते है।

Tantroktam Ratrisuktam
तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम्

दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) में रात्रि सूक्त दो प्रकार के बताये गये है – पहला है वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम् और दूसरा है तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम्। रात्रि देवता के प्रतिपादक सूक्त को रात्रि सूक्त कहा जाता है। तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्त दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में ही है।

Tantroktam Ratri Suktam Lyrics
तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम्

॥ अथ तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् ॥

ॐ विश्‍वेश्‍वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम्।
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः॥1॥

ब्रह्मोवाच

त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका।
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता॥2॥

अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः।
त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा॥3॥

त्वयैतद्धार्यते विश्‍वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्।
त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा॥4॥

विसृष्टौ सृष्टिरुपा त्वं स्थितिरूपा च पालने।
तथा संहृतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये॥5॥

महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः।
महामोहा च भवती महादेवी महासुरी॥6॥

प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्‍च दारुणा॥7॥

त्वं श्रीस्त्वमीश्‍वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा।
लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेव च॥8॥

खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा।
शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥9॥

सौम्या सौम्यतराशेषसौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी।
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्‍वरी॥10॥

यच्च किञ्चित् क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके।
तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा॥11॥

यया त्वया जगत्स्रष्टा जगत्पात्यत्ति यो जगत्।
सोऽपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्‍वरः॥12॥

विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान एव च।
कारितास्ते यतोऽतस्त्वां कः स्तोतुं शक्तिमान् भवेत्॥13॥

सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवि संस्तुता।
मोहयैतौ दुराधर्षावसुरौ मधुकैटभौ॥14॥

प्रबोधं च जगत्स्वामी नीयतामच्युतो लघु।
बोधश्‍च क्रियतामस्य हन्तुमेतौ महासुरौ॥15॥

॥ इति रात्रिसूक्तम् ॥

नोट : तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम् के पाठ के बाद देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है।