ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र (Rin Mukti Ganesh Stotra) का नियमित पाठ करने से साधक के जीवन की समस्त विघ्न -बाधाएं दूर होती है और उसे हर प्रकार के ऋण से मुक्ति प्राप्त होती है। पढ़ियें भगवान गणेश का एक शक्तिशाली स्तोत्र और साथ ही जानियें इसका पाठ करने के लाभ…
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Whe and How to Recite Rin Mukti Ganesh Stotra?
ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?
ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र (Rin Mukti Ganesh Stotra) का पाठ सुबह या शाम कभी भी किया जा सकता है। शरीर और मन की शुद्धता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने मुनुष्य का कल्याण होता है।
- प्रात: काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें। और भगवान गणेश का ध्यान करें। भगवान गणेश को पीले पुष्प, दूर्वा और सुगन्ध अर्पित करें।
- पूर्ण श्रद्धा-भक्ति और शुद्ध उच्चारण के साथ ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ समाप्त होने के बाद भगवान गणेश से अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगें और फिर उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें।
विशेष: ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र (Rin Mukti Ganesh Stotram) का पाठ दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और संध्या के समय पूरे छ: माह तक नियमित रूप से करने से मनुष्य को बड़े से बड़े ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
Benefits Of Reciting Rin Mukti Ganesha Stotram?
ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र पाठ के लाभ
ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र (Rin Mukti Ganesha Stotram) विघ्नहर्ता गणेश जी का एक अद्भुत और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका नियमित रूप से पाठ करने से
- साधक को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।
- गणेश जी के आशीर्वाद से साधक को अपने बड़े से बड़े ऋण से मुक्ति मिलती है। जातक ऋण से मुक्त होकर धनवान होता है।
- मनोरथ सफल होता है। कार्य सिद्धि में आने वाली बाधायें दूर होती है। परेशानियाँ दूर होती है।
- दुख और पीड़ा का नाश होता है।
Rin Mukti Ganesh Stotra Lyrics
ऋणमुक्ति गणेश स्तोत्र
॥ ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्रम् ॥
॥ विनियोग ॥
ॐ अस्य श्रीऋणविमोचनमहागणपति-स्तोत्रमन्त्रस्य
शुक्राचार्य ऋषिः ऋणविमोचनमहागणपतिर्देवता
अनुष्टुप् छन्दः ऋणविमोचनमहागणपतिप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
॥ स्तोत्र पाठ ॥
ॐ स्मरामि देवदेवेशंवक्रतुण्डं महाबलम्।
षडक्षरं कृपासिन्धुंनमामि ऋणमुक्तये॥1॥
महागणपतिं वन्देमहासेतुं महाबलम्।
एकमेवाद्वितीयं तुनमामि ऋणमुक्तये॥2॥
एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकंब्रह्म सनातनम्।
महाविघ्नहरं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥3॥
शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णंशुक्लगन्धानुलेपनम्।
सर्वशुक्लमयं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥4॥
रक्ताम्बरं रक्तवर्णंरक्तगन्धानुलेपनम्।
रक्तपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥5॥
कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णंकृष्णगन्धानुलेपनम्।
कृष्णयज्ञोपवीतं चनमामि ऋणमुक्तये॥6॥
पीताम्बरं पीतवर्णपीतगन्धानुलेपनम्।
पीतपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥7॥
सर्वात्मकं सर्ववर्णंसर्वगन्धानुलेपनम्।
सर्वपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥8॥
एतद् ऋणहरं स्तोत्रंत्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
षण्मासाभ्यन्तरे तस्यऋणच्छेदो न संशयः॥9॥
सहस्रदशकं कृत्वाऋणमुक्तो धनी भवेत्॥
॥ इति रुद्रयामले ऋणमुक्ति श्री गणेशस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
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