नन्दकुमार अष्टकम (Nandkumar Ashtakam) भगवान श्री कृष्ण का अत्यंत ही लोकप्रिय स्तोत्र है। नन्दकुमार अष्टकम में भगवान श्रीकृष्ण के मनमोहक रूप, गुण और लीलाओं का बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण किया गया है। पढ़ियें नन्दकुमार अष्टकम स्तोत्र (Nandkumar Ashtakam Stotram) और पायें भक्तों के पालनहार भगवान श्री कृष्ण की कृपा…
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Benefits of Reciting Nandkumar Ashtakam
नन्दकुमार अष्टकम स्तोत्र पाठ के लाभ
नन्दकुमार अष्टकम (Nandkumar Ashtakam) भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है इस में उनके रूप और गुणों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण सर्वोच्च ब्रह्म है, वही सत्य है, और वही सभी सुखों के सार है। अपने भक्तों का रक्षण और पालन करने वाले भगवान श्री कृष्ण को उनके भक्त गोपाल, यशोदानन्दन, नन्दकुमार इत्यादि नामों से पुकारते है।
नन्दकुमार अष्टकम (Nandkumar Ashtakam) का नित्य पाठ करने से साधक को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। उनकी भक्ति से परम आनन्द की अनुभूति होती है और साधक की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। भ्रम और मोह का नाश करने वाले श्री कृष्ण भगवान अपने भक्तों के कष्टों का भी नाश करते हैं।
नन्दकुमार अष्टकम का नित्य पाठ साधक के जीवन को सुखों और खुशियों से भर देता है। घर-परिवार में शांति और सद्भाव आता है। आपसी रिश्तों प्रेम और स्नेह बढ़ता है।
- नन्दकुमार अष्टकम (Nandkumar Ashtakam) का पाठ प्रात:काल या संध्या के समय कभी भी किया जा सकता है।
- प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर पूजा स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करके नन्दकुमार अष्टकम (Nandkumar Ashtakam) का पाठ करें।
Nandkumar Ashtakam Lyrics
नन्दकुमार अष्टकम
सुंदरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरम् ।
वृन्दावनचन्द्र मानन्दकन्दं परमानन्दं धरणिधरम् ।।
वल्लभघनश्यामं पूर्णकामम् अत्यभिरामं प्रीतिकरम् ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।1।।
सुंदरवारिजवदनं निर्जितमदनम् आनन्दसदनं मुकुटधरम् ।
गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् ।।
वल्लभपटपीतं कृतउपवीतं करनवनीतं विबुधवरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।2।।
शोभितमुखधूलं यमुनाकूलं निपटअतूलं सुखदतरम् ।
मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुं वादितवेणुं मधुरसुरम् ।।
वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलं नखरुचिअमलं तिमिरहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।3।।
शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं नटवरवेशं कामवरम् ।
मायाकृतमनुजं हलधरअनुजं प्रतिहतद्नुजं भारहरम् ।।
वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।4।।
इंदीवरभासं प्रकटसुरासं कुसुमविकासं वंशिधरम् ।
हृतमन्मथमानं रूपनिधानं कृतकलगानं चित्तहरम् ।।
वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासं विविधविलासं केलिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।5।।
अतिपरप्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्मकरम् ।
मोहनमतिधीरं फणिबलवीरं हतपरवीरं तरलतरम् ।।
वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनं हलधरशमनं शैलधरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।6।।
जलधरद्युतिअंग ललितत्रिभंग बहुकृतरंग रसिकवरम् ।
गोकुलपरिवारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढ़तरम् ।।
वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दं कृतआनन्दं भ्रान्तिहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।7।।
वन्दितयुगचरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरम् ।
कालियशिरगमनं कृतफणिनमनं घातितयमनं मृदुलतरम् ।।
वल्लभदु:खहरणं निर्मलचरणम् अशरणशरणं मुक्तिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ।।8।।
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