भगवान श्री कृष्ण को समर्पित दामोदर अष्टकम (Damodarastakam) अत्यंत ही लोकप्रिय स्तोत्र है। दामोदर अष्टकम (Damodar Astakam) में भगवान श्रीकृष्ण के सच्चिदानन्दस्वरूप की स्तुति की गई है। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और आशीर्वाद पाने के लिये पढ़ियें दामोदर अष्टकम स्तोत्र (Damodarastakam Stotram)…
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Benefits of Reciting Damodar Astakam
दामोदर अष्टकम स्तोत्र पाठ के लाभ
दामोदर अष्टकम (Damodarastakam) स्तोत्र सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के को समर्पित है। इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की स्तुति की गई है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से साधक को भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। दुख-दरिद्रता का नाश होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस मृत्युलोक में सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति मोक्ष दिलाने वाली है।
- दामोदर अष्टकम (Damodarastakam) का पाठ प्रात:काल या संध्या के समय कभी भी किया जा सकता है।
- प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर पूजा स्थान पर बैठकर भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करके दामोदर अष्टकम (Damodarastakam) का पाठ करें।
- किसी भी उत्सव और पवित्र अवसर पर इस स्तोत्र का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
Damodarastakam Lyrics
दामोदर अष्टकम
नमामीश्वरं सच्चिदानन्द-रूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमनम्
यशोदाभियोलूखलाद् धावमानं
परामृष्टम् अत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥
रुदन्तं मुहुर् नेत्र-युग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्
मुहुः श्वासकम्पत्रिरेखाङ्क कण्ठ
स्थितग्रैवं दामोदरं भक्तिबद्धम् ॥ २॥
इतीदृक् स्वलीलाभिर् आनन्दकुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेषितज्ञेषु भक्तैर् जितत्वं
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥
वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चन्यं वृणेहं वरेषाद् अपीह
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल-बालं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां किम् अन्यैः ॥ ४॥
इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्तनीलैर्
वृतं कुन्तलैः स्निग्धरक्तैश् च गोप्या
मुहुश् चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्षलाभैः ॥ ५॥
नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःखजालाब्धिमग्नम्
कृपादृष्टिवृष्ट्याति दीनं बतानु
गृहाणेष माम् अज्ञम् एध्य् अक्षिदृश्यः ॥ ६॥
कुवेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहोमेस्ति दामोदरेह ॥ ७॥
नमस्तेस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने
नमो राधिकायै त्वदीयप्रियायै
नमोनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥
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