मनोरथ सिद्धि के लिये करें बटुक भैरव जयंती की रात्रि से बटुक-भैरव की विशेष साधना (Batuk Bhairav Sadhana)। यह एक विशेष साधना है और इसके कुछ नियम होते है। इस साधना को बिना गुरु की आज्ञा और दीक्षा के ना करें। पढ़िये बटुक-भैरव की विशेष साधना (Batuk Bhairav Sadhana) के नियम और विधि…
Batuk Bhairav Sadhana Ke Niyam
बटुक-भैरव की विशेष साधना के नियम
चेतावनी : इस विशेष साधना को बिना गुरु की आज्ञा और दीक्षा के ना करें। साधना के दौरान खान-पान और आचरण सात्विक रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। सहवास से दूर रहें। वाणी पर संयम रखें। क्रोध न करें। विचारों को शुद्ध रखें। झूठ ना बोलें। परनिन्दा से बचें।
Batuk Bhairav Sadhana
बटुक-भैरव की विशेष साधना
बटुक भैरव जयंती की रात्रि से यह साधना प्रारम्भ करें। प्रथम रात्रि को नीचे दिये गये मंत्र की कम से कम 21 माला करें। फिर इसके पश्चात् प्रतिदिन 11 माला करें। जब तक कम से कम सवा लाख जाप पूर्ण नही हो जातें। आप अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार इससे अधिक जप भी कर सकते हैं। सवा लाख जप पूर्ण होने के पश्चात् जप का दशांश (दसवां अंश) यानी अगर आपने 1,25,000 जाप किये है तो 12,500 मंत्रों से हवन में आहुति देनी चाहिए। बटुक भैरव जप के आरंभ और अंत में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए।
जप मंत्र:
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा ऊँ श्री बम बम बटुक भैरवाय नमः
Method Of Worship
साधना की विधि
यह भैरव साधना किसी न किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए ही की जाती है इसलिए सर्वप्रथम अपनी मनोकामना के अनुसार संकल्प बोलें और फिर उसके बाद साधना आरम्भ करें।
- भैरव साधना रात्रिकाल में ही करें। साधना का अचित समय- शाम 7 से रात्रि 11 बजे के बीच होता है।
- दीपक में सिर्फ सरसों के तेल का ही उपयोग करें।
- साधक काले या लाल कपड़े ही पहलें।
- फिर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जप साधना करें।
- मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष या हकीक की माला का ही प्रयोग करें।
- भैरव साधना में नैवेद्य दिनों के अनुसार निवेदन किया जाता है। जैसे रविवार को दूध -चावल की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ या गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगायें।
- प्रतिदिन दिन के अनुसार भोग लगायें और साधना के बाद थोड़ा प्रसाद स्वरूप स्वयं ग्रहण करें और उसके बाद बचा हुआ कुत्तों को खिला दें।
- इस बात का ध्यान रखे कि भगवान भैरव को अर्पित किया नैवेद्य पूजा के बाद सिर्फ उसी स्थान पर ग्रहण करें।