ब्रह्मा जी कृत श्री कृष्ण स्तुति (Shri Krishna Stuti) का पाठ करके साधक बिना यज्ञ-अनुष्ठान और जप के भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। पद्मपुराण के उत्तरखण्ड़ में ब्रह्मा जी ने जिन मंत्रो के द्वारा श्री कृष्ण की स्तुति की गई थी उनका उल्लेख किया गया है। इस परम दुर्लभ एवं चमत्कारिक स्तुति के पाठ से भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। पढ़ियें श्री ब्रह्मा कृत श्री कृष्ण स्तुति और साथ ही जानिये इसके लाभ और माहात्म्य…
Significance Of Shri Krishna Stuti
श्री कृष्ण स्तुति का माहात्म्य
परमपिता ब्रह्मा जी कृत श्री कृष्ण स्तुति में ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण के रूप, गुण, सामर्थ्य और शक्ति का वर्णन किया है। भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के प्रति सदा ही अनुराग रखते है। उनकी भक्त वत्सलता के कई उदाहरण शास्त्रों का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। इस कलियुग के समय में ब्रह्मा कृत श्री कृष्ण स्तुति के पाठ के द्वारा साधक बहुत ही सरलता से भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न कर सकता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। श्री कृष्ण की स्तुति करने से साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
Benefits Of Reading Shri Krishna Stuti
ब्रह्मा कृत श्री कृष्ण स्तुति के लाभ
पुराणों में भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन मिलता है। श्री कृष्ण भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार माने जाते है। भगवान समय- समय पर धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिये अवतार लेते है। ब्रह्मा कृत श्री कृष्ण स्तुति का नित्य पाठ करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते है और उनकी कृपा से
- जातक के पापों का शमन होता है।
- हृदय में आनंद से भर जाता है।
- धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- मान-सम्मान और ऐश्वर्य में बढ़ोत्तरी होती है।
- रोग–दोष-कष्ट का नाश होता है।
- दुख- दरिद्रता का नाश होता है।
- मोह-माया के बन्धनों से छोटकर जातक को ईश्वर की अनपायिनी भक्ति प्राप्त होती है।
- पृथ्वी पर सुख भोगकर जातक मृत्योपरांत मोक्ष को प्राप्त होता है।
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When And How To Recite Shri Krishna Stuti?
श्री कृष्ण स्तुति का पाठ कब और कैसे करें?
श्रद्धा – भक्ति के साथ श्री कृष्ण की स्तुति का पाठ करना चाहिये। शरीर को शुद्ध करके पवित्र भाव से इस स्तोत्र का पाठ करें। सुबह या शाम कभी भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री कृष्ण का ध्यान करें और फिर ब्रह्मा कृत श्री कृष्ण स्तुति का पाठ करें।
Brahma’s Krut Krishna Stuti Lyrics
ब्रह्मणा कृता श्री कृष्ण स्तुतिः
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा परिणीय प्रणम्य च ।
भयादुवाच गोविन्दं ब्रह्मा त्रिभुवनेश्वरः ॥ १०७॥
ब्रह्मोवाच
नमो नमस्ते सर्वात्मंस्तत्वज्ञानस्वरूपिणे ।
नित्यानन्दस्वरूपाय प्रियतात्मन्महात्मने ॥ १०८॥
अणुर्बृहत्स्थूलतररूपः सर्वगतोऽव्ययः ।
अनादिमध्यान्तरूप स्वरूपात्मन्नमोऽस्तु ते ॥ १०९॥
नित्यज्ञानबलैश्वर्यवीर्यतेजोमयस्य च ।
महाशक्ते नमस्तुभ्यं पूर्णषाड्गुण्यमूर्तये ॥ ११०॥
त्वं वेदपुरुषो ब्रह्मन्महापुरुष एव च ।
शरीरपुरुषत्वस्य छन्दःपुरुष एव च ॥ १११॥
चत्वारः पुरुषास्त्वं च पुराणः पुरुषोत्तम ।
विभूतयस्तव ब्रह्मन्पृथिव्यग्न्यनिलादयः ॥ ११२॥
तव वाचा समुद्भूतौ क्ष्मा वह्नी जगदीश्वर ।
अन्तरिक्षं च वायुश्च सृष्टौ प्राणेन ते विभो ॥ ११३॥
चक्षुषा तव संसृष्टौ द्यौश्चादित्यस्तथाव्यय ।
दिशश्च चन्द्रमाः सृष्टाः श्रोत्रेण तव चानघ ॥ ११४॥
अपां स्रावश्च वरुणो मनसा ते महेश्वर ।
उक्ते महति मीमांसे यत्तद्ब्रह्मप्रकाशते ॥ ११५॥
तथैव चाध्वरेष्वेतदेतदेव महाव्रते ।
छन्दोगे ये नभस्येतद्दिव्ये तद्वायुरेव तत् ॥ ११६॥
आकाश एतदेवेदमोषधीष्वेवमेव च ।
नक्षत्रेषु च सर्वेषु ग्रहेष्वेतद्दिवाकरे ॥ ११७॥
एवम्भूतेष्वेवमेव ब्रह्मेत्याचक्षते श्रुतिः ।
तदेव परमं ब्रह्म प्रज्ञातं परितोऽमृतम् ॥ ११८॥
हिरण्मयोऽव्ययो यज्ञः शुचिः शुचिषदित्यपि ।
वैदिकान्यभिधेयानि तथैतान्यस्य न क्वचित् ॥ ११९॥
चक्षुर्मयं श्रोत्रमयं छन्दोमयमनोमयम् ।
वाङ्मयं परमात्मानं परेशं शंसति श्रुतिः ॥ १२०॥
इति सर्वोपनिषदामर्थस्त्वं कमलेक्षण ।
स्तोतुं न शक्तोऽयं त्वां तु सर्ववेदान्तपारगम् ॥ १२१॥
महापराधमेतत्ते वत्सापहरणं मया ।
कृतं तत्क्षम्यतां नाथ शरणागतवत्सल ॥ १२२॥
॥ इति ब्रह्मणा कृता श्रीकृष्णस्तुतिः समाप्ता ॥