धन- समृद्धि, शक्ति, सफलता, विजय, सौभाग्य, आरोग्य, दीर्धायु और रूप-सौन्दर्य प्रदान करने वाला है यह महालक्ष्मी स्तुति का जप…
महालक्ष्मी स्तुति द्वारा माँ लक्ष्मी के विभिन्न रूपों की स्तुति की जाती है। इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है और साधक की मनोकामना पूर्ण करती है। जब किसी की जन्मकुण्ड़ली मे शुक्र ग्रह शुभ स्थिति मे न हो या अशुभ फल दे रहा हो तो उसे महालक्ष्मी स्तुति का पाठ अवश्य करना चाहिये। इससे जातक को शुभ फल प्राप्त होता है।
माँ लक्ष्मी के विभिन्न रूप जैसे आदिलक्ष्मी, सन्तान लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, मेधा लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, भाग्य लक्ष्मी, कीर्ति लक्ष्मी, आरोग्य लक्ष्मी, सिद्ध लक्ष्मी, सौंदर्य लक्ष्मी और साम्राज्य लक्ष्मी की साधना करने से जातक की समस्त मनोकामनायें पूरी होती है।
महालक्ष्मी स्तुति का नियमित रूप से पाठ या श्रवण करने से साधक को महालक्ष्मी प्रसिद्धि, संतान (पुत्र-पौत्र), विद्या (ज्ञान), धन- समृद्धि, अन्न, जागरूकता, पशुधन, शक्ति, सफलता, शुभता, वीरता ,विजय, सौभाग्य, आरोग्य, दीर्धायु, सिद्धियाँ, रूप-सौन्दर्य और मुक्ति प्रदान करती है और उसके शत्रुओं का नाश करती है।
यह एक बहुत ही दुर्लभ, शुभ और मनोकामना सिद्ध करने वाला पाठ है। विशेषकर दीवाली की रात्रि पर इसका पाठ अत्यंत शुभ फलदायी है।
महालक्ष्मी स्तुति
आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि ।
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि ।
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि ।
विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि ।
धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते ।
धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि ।
प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि ।
अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि ।
वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
जय लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे ।
जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि ।
भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते ।
कीर्तिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि ।
आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि ।
सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते ।
रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे ।।
मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे ।
मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा ।।
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते ।।
शुभं भवतु कल्याणी आयुरारोग्य सम्पदाम् ।
मम शत्रु विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते ।।
दीपज्योति नमोस्तुते दीपज्योति नमोस्तुते ।