प्रदोष का व्रत करें और पाये भगवान शिव की कृपा से उत्तम स्वास्थ्य, दीर्धायु और धन-सम्पदा। हिंदु धर्म में प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) को अति विशेष माना जाता हैं। जानियें प्रदोष व्रत का महत्व और उसके लाभ। साथ ही पढ़ियें प्रदोष व्रत एवं उद्यापन की विधि और व्रत कथा।
वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख
Pradosh Vrat / Trayodashi Vrat
प्रदोष व्रत / त्रयोदशी व्रत
हिंदु पंचांग में हर माह में दो बार त्रयोदशी तिथि आती है और उसी दिन प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) किया जाता हैं। एक त्रयोदशी तिथि कृष्णपक्ष और दूसरी शुक्लपक्ष में आती हैं। प्रदोष का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं। हिंदु पुराणों में कलयुग में प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) करना बहुत ही लाभदायक और मंगलकारी बताया गया हैं। प्रदोष व्रत करने से जातक को भगवान शिव की कृपा से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता हैं, वो दीर्धायु होता है और उसे कभी भी धन की कमी नही होती।
Name and Significance Of Pradosh Vrat
भिन्न भिन्न प्रदोष व्रत के नाम और उनका महत्व
सप्ताह के अलग-अलग दिन प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) होने पर उसका नाम और फल भी भिन्न-भिन्न होता हैं।
रवि प्रदोषम (Ravi Pradosh) – प्रदोष व्रत यदि रविवार के दिन हो तो उसे रवि प्रदोष कहते हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से जातक दीर्धायु होता है, उसके रोगों का नाश होता है और वो निरोगी हो जाता हैं।
सोम प्रदोषम या सौम्य प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम (Som Pradosh) – प्रदोष व्रत यदि सोमवार के दिन तो तो उसे सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम के नाम से जाना जाता हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से जातक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
भौम प्रदोषम (Bhom Pradosh) – जब प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन तो तो उसे भौम प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। इस प्रदोष का व्रत करने से जातक के रोगों का नाश होता है और उसे उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती हैं।
बुध प्रदोषम (Budh Pradosh) – जब प्रदोष व्रत बुधवार के दिन हो तो उसे बुध प्रदोषम कहते हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से जातक की सभी कामनायें पूर्ण होती हैं।
गुरू प्रदोषम (Guru Pradosh) – जब प्रदोष व्रत बृहस्पतिवार यानि गुरूवार के दिन हो तो उसे गुरू प्रदोषम कहते हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से जातक अपने शत्रुओं पर विजय पाता है और उसके शत्रुओं का नाश होता हैं।
शुक्र प्रदोषम (Shukra Pradosh) – जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन हो तो उसे शुक्र प्रदोषम कहते हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से जातक के सौभाग्य में वृद्धि होती है, धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती और दांपत्य जीवन सुखमय होता हैं।
शनि प्रदोषम (Shani Pradosh) – जब प्रदोष व्रत शनिवार के दिन हो तो उसे शनि प्रदोषम कहते हैं। इस प्रदोष व्रत को करने से संतान की इच्छा रखने वाले जातक को संतान की प्राप्ति होती हैं।
जातक जिस भी कामना की पूर्ति की इच्छा से प्रदोष व्रत करता है उसकी वो कामना अवश्य पूर्ण होती हैं।
Benefits Of Pradosh Vrat
प्रदोष व्रत के लाभ
हिंदु धर्म में प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) का विशेष महत्व हैं। प्रदोष व्रत (त्रयोदशी व्रत) भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं। ऐसा माना जाता है की इस दिन व्रत एवं पूजन करने से जातक को देवाधिदेव भगवान शंकर की कृपा प्राप्त होती हैं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रदोष व्रत एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं।
सर्वप्रथम प्रदोष व्रत के विषय में भगवान शिव ने माता सती को बताया था। उनके पश्चात् वेदव्यास जी ने सूत जी को प्रदोष व्रत के विषय में बताया। फिर सूत जी ने शौनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों को प्रदोष व्रत के महत्व के विषय में बताया। इस व्रत को करके जातक अपने जीवनकाल के सभी पापों का प्रायश्चित कर लेता हैं। प्रदोष व्रत को बहुत ही शुभ फल देने वाला माना जाता हैं। जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान शिव की उपासना करता हैं, उसके जीवन में भगवान शिव की कृपा के कोई परेशानी नही रहती।
प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) का विधि-विधान के साथ पालन करने से –
1. जातक के सभी कष्टों और परेशानियों का नाश हो जाता हैं।
2. मनुष्य जीवन के सभी सुखों को भोगकर मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करता हैं।
3. हिंदु धर्म में गौदान को बहुत महत्व दिया गया हैं। इसे महान पुण्य देने वाला माना जाता हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष का व्रत करने से गौदान से दोगुना के समान पुण्य प्राप्त होता हैं।
4. प्रदोष व्रत करने से जातक से समस्त पापों का नाश होता हैं।
5. जातक को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती हैं।
6. रोगी के रोगों का नाश होकर उसे आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
7. धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती हैं।
8. आयु में वृद्धि होती हैं।
9. जातक जिस कामना के साथ व्रत का पालन करता हैं, उसकी वो कामना सिद्ध होती हैं।
10. संतान की इच्छा करने वाले को संतान की प्राप्ति होती हैं।
11. दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती हैं।
12. शत्रुओं का नाश होता हैं।
शिव चालीसा में भी त्रयोदशी व्रत का महत्व बताया गया हैं।
त्रयोदशी व्रत करें हमेशा, तन नही ताके रहे कलेशा ।
अर्थात जो भी जातक त्रयोदशी यानि प्रदोष व्रत का पालन करता है, उस के सभी रोगों का नाश हो जाता हैं और वो स्वस्थ रहता हैं।
Pradosh Vrat Ki Vidhi
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत का पूजन प्रदोष काल (Pradosh vrat) में किया जाना उत्तम माना जाता हैं। संध्या और रात्रि के बीच समय को प्रदोष काल कहा जाता हैं। प्रदोष व्रत की विधि इस प्रकार हैं-
1. प्रदोष व्रत करने वाला जातक त्रयोदशी तिथि के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. फिर शिवालय जाकर धूप-दीप जलाकर दूध और गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें।
3. तत्पश्चात् चंदन लगाकर, रोली-चावल चढ़ायें, बेलपत्र चढ़ायें, फल-फूल अर्पित करके भगवान शिव की पूजा करें।
4. प्रदोष के व्रत में भोजन ग्रहण नही करतें। त्रयोदशी के पूरे दिन उपवास का पालन करने के बाद सूर्यास्त से पूर्व एक बार फिर से स्नान करके स्वच्छ श्वेत रंग के वस्त्र धारण करें।
5. घर के पूजा स्थान को साफ करके गंगाजल छिड़के।
6. गाय के गोबर से से लीपकर उस पर रंगोली बनायें।
7. रंगोली के आस-पास एक मंड़प बनाकर उसमें एक चौकी बिछाकर उसपर भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति स्थपित करें।
8. स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें।
9. “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र का जाप करते हुये भगवान शिव की पूजा करें। धूप-दीप जलाकर, रोली-चावल-चंदन से तिलक करें। फल-फूल अर्पित करें।
10. तत्पश्चात् प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा के बाद भगवान शिव की आरती करें।
11. पूजन के बाद फलाहार करें।
Pradosh Vrat Ke Udyapan Ki Vidhi
प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि
प्रदोष व्रत (Pradosh vrat) का पालन करने वाले को इस व्रत को छोड़ने से पहले उद्यापन अवश्य करना चाहिये। प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि इस प्रकार हैं –
1. त्रयोदशी से एक दिन पूर्व यानि द्वादशी के दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना करें। और रात्रि को भजन कीर्तन का आयोजन करें।
2. त्रयोदशी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजास्थान पर रंगोली बनाकर,मंड़प सजाकर हवन कुण्ड़ तैयार करें।
3. हवन में आहूति देने के लिये खीर बनायें।
4. विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें।
5. तत्पश्चात् “ऊँ उमा सहित शिवाय नम:” मन्त्र का जाप करते हुये हवन में खीर की 108 आहूतियाँ दें।
6. हवन पूर्ण होने के बाद भगवान शिव की आरती करें। आरती करने के बाद शांति पाठ अवश्य करें।
7. हवन-पूजन के बाद दो ब्राह्मणों को भोजन करायें और यथासम्भव दान-दक्षिणा देकर उन्हे संतुष्ट करें।