नवरत्नमालिका स्तोत्रम् (Navaratna Malika Stotram) का नित्य पाठ करने से भुक्ति, मुक्ति और मनोवांछित फल प्राप्त होगा

Navaratna Malika Stotram; Devi Tripura Sundari;

भगवान शंकर द्वारा रचित नवरत्नमालिका स्तोत्रम् (Navaratna Malika Stotram) में देवी के अद्वितीय रूप का अनुपम वर्णन किया गया है। इसके द्वारा देवी का ध्यान करने से देवी शीघ्र प्रसन्न होती है और साधक को उसकी इच्छा के अनुरूप फल प्रदान करती है। पढ़ियें नवरत्नमालिका स्तोत्रम् और उसके लाभ…

Benefits of Reading Navaratna Malika Stotram
नवरत्नमालिका स्तोत्रम् के लाभ

नवरत्नमालिका स्तोत्रम् (Navaratna Malika Stotram) एक बहुत ही दुर्लभ स्तोत्र है इसके विषय में बहुत से लोग नही जानते। इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से अत्यंत ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसका पाठ करने से

  • साधक को समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  • मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  • भाग्योदय होता है।
  • कार्य सुगमता से पूर्ण होते है।
  • धन-वैभव-बल कई गुना बढ़ता है।

Navaratnamalika Stotram Lyrics

नवरत्नमालिका स्तोत्रम्

हारनूपुरकिरीटकुण्डलविभूषितावयवशोभिनीं
कारणेशवरमौलिकोटिपरिकल्प्यमानपदपीठिकाम् ।
कालकालफणिपाशबाणधनुरङ्कुशामरुणमेखलां
फालभूतिलकलोचनां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ १॥

गन्धसारघनसारचारुनवनागवल्लिरसवासिनीं
सान्ध्यरागमधुराधराभरणसुन्दराननशुचिस्मिताम् ।
मन्धरायतविलोचनाममलबालचन्द्रकृतशेखरीं
इन्दिरारमणसोदरीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ २॥

स्मेरचारुमुखमण्डलां विमलगण्डलम्बिमणिमण्डलां
हारदामपरिशोभमानकुचभारभीरुतनुमध्यमाम् ।
वीरगर्वहरनूपुरां विविधकारणेशवरपीठिकां
मारवैरिसहचारिणीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ३॥

भूरिभारधरकुण्डलीन्द्रमणिबद्धभूवलयपीठिकां
वारिराशिमणिमेखलावलयवह्निमण्डलशरीरिणीम् ।
वारिसारवहकुण्डलां गगनशेखरीं च परमात्मिकां
चारुचन्द्ररविलोचनां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ४॥

कुण्डलत्रिविधकोणमण्डलविहारषड्दलसमुल्लस-
त्पुण्डरीकमुखभेदिनीं च प्रचण्डभानुभासमुज्ज्वलाम् ।
मण्डलेन्दुपरिवाहितामृततरङ्गिणीमरुणरूपिणीं
मण्डलान्तमणिदीपिकां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ५॥

वारणाननमयूरवाहमुखदाहवारणपयोधरां
चारणादिसुरसुन्दरीचिकुरशेकरीकृतपदाम्बुजाम् ।
कारणाधिपतिपञ्चकप्रकृतिकारणप्रथममातृकां
वारणान्तमुखपारणां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ६॥

पद्मकान्तिपदपाणिपल्लवपयोधराननसरोरुहां
पद्मरागमणिमेखलावलयनीविशोभितनितम्बिनीम् ।
पद्मसम्भवसदाशिवान्तमयपञ्चरत्नपदपीठिकां
पद्मिनीं प्रणवरूपिणीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ७॥

आगमप्रणवपीठिकाममलवर्णमङ्गलशरीरिणीं
आगमावयवशोभिनीमखिलवेदसारकृतशेखरीम् ।
मूलमन्त्रमुखमण्डलां मुदितनादबिन्दुनवयौवनां
मातृकां त्रिपुरसुन्दरीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ८॥

कालिकातिमिरकुन्तलान्तघनभृङ्गमङ्गलविराजिनीं
चूलिकाशिखरमालिकावलयमल्लिकासुरभिसौरभाम् ।
वालिकामधुरगण्डमण्डलमनोहराननसरोरुहां
बालिकामखिलनायिकां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ९॥

नित्यमेव नियमेन जल्पतां
भुक्तिमुक्तिफलदामभीष्टदाम् ।
शंकरेण रचितां सदा जपे-
न्नामरत्ननवरत्नमालिकाम् ॥ १०॥ (११)

॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्रजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ नवरत्नमालिका संपूर्णा ॥

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