अपने भक्तों की रक्षा करने के लिये भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। मनुष्य को जीवन की सभी समस्याओं, दुखों, पापों और कष्टों से निकालने वाला है भगवान विष्णु का मत्स्य रूप। जानियें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का महत्व और श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ…
Significance of Matsya Avatar of Lord Vishnu
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का महत्व
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार का मानव और अन्य जीवों के लिये क्या महत्व है? यह प्रश्न बहुत से लोगों के मन में उठता है। भगवान विष्णु ने धरती पर जितने भी अवतार लिये है उनके हर अवतार का उद्देश्य मानव मात्र की भलाई है। उन्होने समय समय पर अवतार ले कर इस धरती और इस धरती पर रहने वालें सभी प्राणी मात्र का कल्याण किया है। भगवान विष्णु ने मानव जाति की रक्षार्थ मत्स्य अवतार लिया था। जीवों को जलप्रलय से बचाने और एक नई रचना के प्रारम्भ हेतु भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लेकर अपने भक्तों को जीवन मे सदा सतर्क रहने, विपत्ति में भी ध्यान को एकाग्रचित करने, आलस्य को त्यागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने और अपने अतीत को भूलकर वर्तमान समय में अपने कर्म पर ध्यान देने के साथ ही कर्म संबंधी उलझनों और असंतुलन को कम करने की शिक्षा दी है। इस रूप में भगवान विष्णु मनुष्य को अपने अतीत को भूलकर और बेहतर भविष्य के लिये एक नई शुरुआत करने का सन्देश देते है।
Benefits of reciting Makaradi Shri Matsyashtottarashatanama Stotram
श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् के लाभ
भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की उपासना करने से साधक को बहुत शुभ परिणाम प्राप्त होते है। श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निवारण होता है।
- वित्तीय संकटों का समाधान होता है। धन संपदा में वृद्धि होती है।
- नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा होती है।
- जन्म कुंडली में जो दोष हो उनका निवारण होता है। केतु ग्रह से होने वाले दोषों को शमन होता है।
- साधक सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
- जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
- कार्यों मे आने वाली बाधायें दूर होती है।
- जीवन की खतरों से सुरक्षा होती है।
- कार्य क्षेत्र में प्रगति होती है।
- शत्रु पर विजय प्राप्त होती है,
- जीवन में शान्ति और सद्भाव आता है।
- ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ साधक को सशक्त बनाता है।
- विपत्तियों से साधक की रक्षा करता है।
- पूर्वजन्म के पाप और श्राप से मुक्ति मिलती है।
How And When To Recite Makaradi Shri Matsyashtottarashatanama Stotram?
श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करें?
- प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर पूजास्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाये।
- भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के चित्र या प्रतिमा के समक्ष दीपक जलाकर, रोली-चावल-पुष्पादि चढ़ाकर पूजा करें।
- फिर शुद्ध मन और पूर्ण श्रद्ध-भक्ति के साथ श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ करें।
- पाठ समाप्त करने के बाद अपनी गलतियों के लिये क्षमा याचना करें। और अपने समस्या जिसका निवारण आप चाहते है या मनोरथ ईश्वर से निवेदन करें।
Makaradi Shrimatsyashtottarashatanama Stotram
मकारादि श्रीमत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
श्री हयग्रीवाय नमः ।
हरिः ॐ
मत्स्यो महालयाम्भोधिसञ्चारी मनुपालकः ।
महीनौकाप्ऱिष्टदेशो महासुरविनाशनः ॥ 1॥
महाम्नायगणाहर्त्रा महनीयगुणाद्भुतः ।
मरालवाहव्यपनच्छेत्ता मथितसागरः ॥ 2॥
महासत्वो महायादो गणभुङ्मधुराकृतिः ।
मदोल्लुंठनसङ्क्षुब्ध सिन्धुभङ्गहतोर्थ्वखः ॥ 3॥
महाशयो महाधीरो महौषधिसमुद्धरः ।
महायशा महानन्दो महातेजा महावपुः ॥ 4॥
महीपङ्कवृषत्पृष्ठो महाकल्पार्णवह्रदः ।
मित्रशुभ्रांशुवलयनेत्रो मुखमहानभाः ॥ 5॥
महालक्ष्मीनेत्ररूपगर्वसर्वङ्कषाकृतिः ।
महामायो महाभूतपालको मृत्युमारकः ॥ 6॥
महाजवो महापृच्छच्छिन्नमीनादिराशिकः ।
महातलतलो मर्त्यलोकगर्भो मरुत्पतिः ॥ 7॥
मरुत्पतिस्थानपृष्टो महादेवसभाजितः ।
महेन्द्राद्यखिलप्राणिमारणो मृदिताखिलः ॥ 8॥
मनोमयो माननीयो मनस्वी मानवर्धनः ।
मनीषिमानसाम्भोधि शायी मनुविभीषणः ॥ 9॥
मृदुगर्भो मृगाङ्काभो मृग्यपादो महोदरः ।
महाकर्तरिकापुच्छो मनोदुर्गमवैभवः ॥ 10॥
मनीषी मध्यरहितो मृषाजन्मा मृतव्ययः ।
मोघेतरोरुसङ्कल्पो मोक्षदायी महागुरुः ॥ 11॥
मोहासङ्गसमुज्जृम्भत्सच्चिदानन्दविग्रहः ।
मोहको मोहसंहर्ता मोहदूरो महोदयः ॥ 12॥
मोहितोत्तारितमनुर्मोचिताश्रितकश्मलः ।
महर्षिनिकरस्तुत्यो मनुज्ञानोपदेशकः ॥ 13॥
महीनौबन्धनाहीन्द्ररज्जुबद्धैकशृङ्गकः ।
महोवातहतोर्वीनौस्तम्भनो महिमाकरः ॥ 14॥
महाम्बुधितरङ्गाप्तसैकतीभूतविग्रहागः ।
मरालवाहनिद्रान्तसाक्षी मधुनिषूदनः ॥ 15॥
महाब्धिवसनो मत्तो महामारुतवीजितः ।
महाकाशालयो मूर्छत्तमोम्बुधिकृताप्लवः ॥ 16॥
मृदिताब्जारिविभवो मुषितप्राणिचेतनः ।
मृदुचित्तो मधुरवाङ्मृष्टकामो महेश्वरः ॥ 17॥
मरालवाहस्वापान्त दत्तवेदो महाकृतिः ।
महीश्लिष्टो महीनाथो मरुन्मालामहामणिः ॥ 18॥
महीभारपरीहर्ता महाशक्तिर्महोदयः ।
महन्महान्मग्नलोको महाशान्तिर्महन्मनाः ॥ 19॥
महावेदाभिसञ्चारी महात्मा मोहितात्मभूः ।
मन्त्रस्मृतिभ्रंशहेतुर्मन्त्रकृन्मन्त्रशेवधिः ॥ 20॥
मन्त्रमन्त्रार्थ तत्त्वज्ञो मन्त्रार्थो मन्त्रदैवतम् ।
मन्त्रोक्तकारिप्रणयी मन्त्रराशिफलप्रदः ॥ 21॥
मन्त्रतात्पर्यविषयो मनोमन्त्राद्यगोचरः ।
मन्त्रार्थवित्कृतक्षेमो रामं रक्षतु सर्वतः ॥ 22॥
॥ इति मकारादि श्री मत्स्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥