देवी महात्म्य के त्रयोदश अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 13) में पढ़ें राजा सुरथ और वैश्य को देवी के द्वारा क्या वरदान प्राप्त हुये? माँ अम्बिका के द्वारा असुर दल के संहार के पश्चात् सभी देवताओं ने मिलकर देवी की स्तुति का गान किया। उससे प्रसन्न होकर देवी नारायणी ने देवताओं को वरदान दिये। इस अध्याय में आप पढ़ेंगे राजा सुरथ और वैश्य को देवी ने क्या वरदान दिये?
ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत ही अद्भुत और शक्तिशाली है। इसके पाठ से साधक के जीवन की समस्त समस्याओं का निवारण होता है। माँ दुर्गा के महिमा अपरम्पार है। दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का वर्णन किया गया है जिसमें देवी दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। और राक्षस महिषासुर का वध करके महिषासुरमर्दिनी कहलाई। दुर्गा सप्तशती का पाठ 13 अध्यायों में बाँटा गया है, इसमे 700 श्लोक हैं। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य और चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है।
Devi Mahatmyam Chapter 13
॥ श्रीदुर्गासप्तशती – त्रयोदशोऽध्यायः ॥
॥ ध्यानम् ॥
ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे॥
“ॐ” ऋषिरुवाच॥1॥
एतत्ते कथितं भूप देवीमाहात्म्यमुत्तमम्।
एवंप्रभावा सा देवी ययेदं धार्यते जगत्॥2॥
विद्या तथैव क्रियते भगवद्विष्णुमायया।
तया त्वमेष वैश्यश्च तथैवान्ये विवेकिनः॥3॥
मोह्यन्ते मोहिताश्चैव मोहमेष्यन्ति चापरे।
तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम्॥4॥
आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा॥5॥
मार्कण्डेय उवाच॥6॥
इति तस्य वचः श्रुत्वा सुरथः स नराधिपः॥7॥
प्रणिपत्य महाभागं तमृषिं शंसितव्रतम्।
निर्विण्णोऽतिममत्वेन राज्यापहरणेन च॥8॥
जगाम सद्यस्तपसे स च वैश्यो महामुने।
संदर्शनार्थमम्बाया नदीपुलिनसंस्थितः॥9॥
स च वैश्यस्तपस्तेपे देवीसूक्तं परं जपन्।
तौ तस्मिन पुलिने देव्याः कृत्वा मूर्तिं महीमयीम्॥10॥
अर्हणां चक्रतुस्तस्याः पुष्पधूपाग्नितर्पणैः।
निराहारौ यताहारौ तन्मनस्कौ समाहितौ॥11॥
ददतुस्तौ बलिं चैव निजगात्रासृगुक्षितम्।
एवं समाराधयतोस्त्रिभिर्वर्षैर्यतात्मनोः॥12॥
परितुष्टा जगद्धात्री प्रत्यक्षं प्राह चण्डिका॥13॥
देव्युवाच॥14॥
यत्प्रार्थ्यते त्वया भूप त्वया च कुलनन्दन।
मत्तस्तत्प्राप्यतां सर्वं परितुष्टा ददामि तत्॥15॥
मार्कण्डेय उवाच॥16॥
ततो वव्रे नृपो राज्यमविभ्रंश्यन्यजन्मनि।
अत्रैव च निजं राज्यं हतशत्रुबलं बलात्॥17॥
सोऽपि वैश्यस्ततो ज्ञानं वव्रे निर्विण्णमानसः।
ममेत्यहमिति प्राज्ञः सङ्गविच्युतिकारकम्॥18॥
देव्युवाच॥19॥
स्वल्पैरहोभिर्नृपते स्वं राज्यं प्राप्स्यते भवान्॥20॥
हत्वा रिपूनस्खलितं तव तत्र भविष्यति॥21॥
मृतश्च भूयः सम्प्राप्य जन्म देवाद्विवस्वतः॥22॥
सावर्णिको नाम* मनुर्भवान् भुवि भविष्यति॥23॥
वैश्यवर्य त्वया यश्च वरोऽस्मत्तोऽभिवाञ्छितः॥24॥
तं प्रयच्छामि संसिद्ध्यै तव ज्ञानं भविष्यति॥25॥
मार्कण्डेय उवाच॥26॥
इति दत्त्वा तयोर्देवी यथाभिलषितं वरम्॥27॥
बभूवान्तर्हिता सद्यो भक्त्या ताभ्यामभिष्टुता।
एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः॥28॥
सूर्याज्जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः॥29॥
एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः
सूर्याज्जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः॥क्लीं ॐ॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये सुरथवैश्ययोर्वरप्रदानं नाम त्रयोदशोऽध्यायः॥१३॥
उवाच ६, अर्धश्लोकाः ११, श्लोकाः १२, एवम् २९, एवमादितः॥७००॥
समस्ता उवाचमन्त्राः ५७, अर्धश्लोकाः ४२, श्लोकाः ५३५, अवदानानि॥६६ ॥
नोट : देवीमाहात्म्ये के त्रयोदश अध्याय (Devi Mahatmyam Chapter 13) के बाद उपसंहारः करें।
दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) के पाठ का क्रम इस प्रकार से है –
- देवी कवच
- अर्गला स्तोत्रम्,
- कीलकम् स्तोत्र
- वेदोक्तम् रात्रि सूक्तम्
- तन्त्रोक्तम् रात्रि सूक्तम्
- देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम्
- नवार्ण विधि
- सप्तशतीन्यास:
- देवीमाहात्म्ये प्रथम अध्याय
- देवीमहात्म्य द्वितीय अध्याय
- देवी महात्म्य अध्याय तृतीय
- देवी महात्म्य अध्याय चतुर्थ
- देवी महात्म्य अध्याय पञ्चम
- देवी महात्म्य अध्याय षष्टम
- देवी महात्म्य अध्याय सप्तम
- देवी महात्म्य अध्याय अष्टम
- देवी महात्म्य अध्याय नवम
- देवी महात्म्य अध्याय दशम
- देवी महात्म्य अध्याय एकादश
- देवी महात्म्य अध्याय द्वादश
- देवी महात्म्य अध्याय त्रयोदश